प्रस्तावना: शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान का हस्तांतरण नहीं अपितु एक निरंतर प्रगतिशील प्रक्रिया है जो व्यक्ति के विचार, व्यवहार और व्यक्तित्व को समग्र रूप में विकसित करती है। इस प्रक्रिया में तीन प्रमुख स्तंभ – छात्र, शिक्षक और अभिभावक – त्रिकोण के रूप में जुड़े होते हैं। इन तीनों के बीच सशक्त, सकारात्मक और सहयोगात्मक संबंध ही शिक्षा के सतत् विकास का आधार बनते हैं।
(1). त्रिकोणीय संबंध की परिभाषा और महत्व:
छात्र-शिक्षक-अभिभावक के संबंध को यदि एक त्रिकोण के रूप में देखें, तो—
१.छात्र उसकी केन्द्र बिंदु शक्ति हैं,
२.शिक्षक मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत होते हैं,
३.और अभिभावक आधारशिला होते हैं।
यदि इन तीनों कोणों के बीच समन्वय और संवाद बना रहे, तो शिक्षा न केवल सार्थक होती है, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए स्थायी मूल्यों की स्थापना भी करती है।
(2). छात्र: जिज्ञासा और विकास का केन्द्र
छात्र शिक्षा व्यवस्था के केंद्र में हैं। उनके अंदर जन्म लेने वाली जिज्ञासा, सृजनशीलता, नैतिकता और कौशल को यदि सही दिशा मिले, तो वे समाज के निर्माता बनते हैं। परंतु इसके लिए उन्हें समझदारी से मार्गदर्शन चाहिए (शिक्षक की भूमिका) और भावनात्मक-सामाजिक समर्थन चाहिए (अभिभावक की भूमिका)।
(3). शिक्षक: शिक्षण से जीवन निर्माण तक
शिक्षक केवल ज्ञानदाता नहीं, बल्कि चरित्र निर्माता, पथप्रदर्शक और मूल्य-प्रेरक होते हैं। वे यदि:
१.छात्रों को प्रेरित करें,
२.अभिभावकों से नियमित संवाद करें,
३.और तकनीकी नवाचारों के साथ स्वयं को अद्यतन रखें तो वे शिक्षा के ‘सतत् विकास’ में एक सशक्त स्तंभ सिद्ध होते हैं।
(4). अभिभावक: सहयोगी एवं सहयात्री की भूमिका
घर ही पहली पाठशाला है। अभिभावक बच्चों के व्यवहार, भावनात्मक स्वास्थ्य और अध्ययन के प्रति रुचि को प्रभावित करते हैं। विद्यालय से नियमित संवाद और सहभागिता के माध्यम से शिक्षक के प्रयासों को आगे बढ़ा सकते हैं। घर का शैक्षिक वातावरण निर्माण कर सकते हैं।
(5). समन्वय की आवश्यकता: त्रिकोणीय संवाद का ढाँचा
वर्तमान युग में त्रिकोणीय समन्वय के लिए कुछ आवश्यक पहल हैं:
१. पीटीएम (Parent-Teacher Meeting) को संवादमूलक और समाधानपरक बनाना,
२. छात्रों के उपलब्धियों और चुनौतियों को मिलकर साझा करना,
३. डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से संवाद और सूचना का आदान-प्रदान बढ़ाना।
(6). शिक्षा का सतत् विकास: एक सम्मिलित यात्रा
सतत् विकास का आशय केवल शैक्षणिक परिणाम से नहीं, अपितु जीवन मूल्यों, सामाजिक कौशल और राष्ट्र निर्माण से है। इसके लिए आवश्यक है:
१.नैतिक शिक्षा और मूल्यनिष्ठ पद्धतियाँ,
२.समावेशी शिक्षा नीति,
३.शिक्षकों का निरंतर प्रशिक्षण,
४.और अभिभावकों की सकारात्मक भागीदारी।
(7). चुनौतियाँ और समाधान:
चुनौतियाँ:
१.संचार की कमी,
२.अभिभावकों की उदासीनता,
३.शिक्षकों पर प्रशासनिक दबाव,
४.छात्रों में डिजिटल व्यसन।
समाधान:
१.कार्यशालाओं के आयोजन
२.संवेदनशील संवाद,
३.परामर्श केंद्रों की स्थापना,
और विद्यालय-घर के बीच निरंतर संवाद।
निष्कर्ष:छात्र, शिक्षक और अभिभावक एक त्रिकोण की भाँति हैं, जिसमें संतुलन ही शिक्षा को सफल, समग्र और सतत् बनाता है। यदि यह त्रिकोण संवाद, विश्वास और सहयोग की भावना से जुड़ा रहे, तो शिक्षा केवल प्रमाणपत्र नहीं, बल्कि सशक्त नागरिकों के निर्माण का माध्यम बनती है।
– सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक
उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)