रमिया और टुनका दहाड़ें मार कर रो रहे थे। रोते भी क्यों नहीं, जिगर का एक ही तो टुकड़ा था जिसे गंगा मैया ने अपने ओद्र में समा लिया था।टुनका अस्पताल के चीर-फाड़ घर में दारु पीकर धुत्त पड़ा था और रमिया अपने बसघर में खाना पकाती थी।इसी बीच न जाने पड़ोस के कुछ आवारागर्द छोकरों के संग बिरजू श्मशान की ओर चला गया था। बालकों को घर- गृहस्थी की क्या फिक्र?वे तो आजाद परिंदे हैं। सभी ऊधम मचाते हुए नदी में कूदने लगे। बिरजू कछार की ऊंचाई से ऐसा कूदा कि फिर ऊपर नहीं आ सका। कीचड़ में पांव फंस जाने से दम टूट गया था उसका। जबतक अड़ोस-पड़ोस के लोग दौड़कर आते, पंछी फुर्र हो चुका था।
होनी को भला कौन टाल सकता है? बस समझ लो, नुनुआ इतने ही दिनों के लिए तुम लोगों का अपना बनकर आया था।दिल को थोड़ा करा करो। ईश्वर दीन-दुखियों पर ही बज्र गिराते हैं।’- हित-संबंधी अपने-अपने तरीके से पति-पत्नी को सांत्वना देते थे।
बिरजू के डूबने की खबर जान पुलिस भी आ गई थी। उसने लाश को कब्जे में ले लिया। फिर पंचनामा बनाकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। लेकिन पोस्मार्टम करेगा कौन? यहां तो मुरदों को चीर-फाड़ करने वाला बस एक ही है। फिर अपने कलेजे को भी कोई चीरता है क्या? कैसे छुरी चलायेगा जिगर के टुकड़े पर वह।’हा ईश्वर! यह दिन देखने के पहले मुझे ही क्यों नहीं बुला लिया था।’ अस्पताल के छोटे-बड़े सभी कर्मियों ने खूब समझाया, मिन्नतें कीं। यह कि बिना चीर-फाड़ किए मिट्टी मिलना असम्भव है, पर टुनका ने मुंह नहीं उठाया।
आखिर कर्मियों ने एक आदमी को इस काम के लिए बमुश्किल से तैयार कर लिया। लेकिन उसने तो एक अलग ही टंटा खड़ा कर दिया। बिना पांच हजार पेशगी लिए वह मुरदे को छूयेगा तक नहीं। लोगों ने समझाया भी कि वह खाने-पीने के लिए कुछ रुपए रख ले। बेचारा टुनका पर तो ऐसे ही दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। लेकिन उसने एक नहीं सुनी।
टुनका को याद आयी।जब पोस्मार्टम के लिए लाशें आती हैं, चीर-फाड़ के बाद उसे सिलने के नाम पर आंसुओं में डूबे शोक- संतप्तों से मनमना रुपये ऐंठने की कवायद शुरू हो जाती। आना-कानी करने वालों को अहर्ता पूरी नहीं करने के नाम पर घंटों रोका जाता है अथवा उन्हें वीभत्स लाशें उठाकर ले जाने को विवश होना पड़ता है। यह कैसी बर्बरता है? शायद पशु भी इतना नीचे नहीं गिरता। लेकिन यह उसके अकेले बस की बात नहीं है। वह तो खाने-पीने तक पाकर खुश हो जाता है, वह भी स्वेच्छा से।पर यहां तो बाबुओं व दूसरे रसूखों की चलती है। बेचारा टुनका तो सिर्फ बदनाम है।
टुनका जैसे ही चीर- फाड़ के बदले पांच हजार रुपये की बात सुनी, उसकी वेदना अनन्त हो गई। वह फूट-फूट कर बिलखने लगा। एक तो बुढ़ापे की लाठी क्रूर काल ने छीन ली। ऊपर से भारी उत्कोच! यह तो घोर अनर्थ है। यह धरती फट क्यों नहीं जाती? मनुष्य को दूसरे का मर्म तब ज्ञात होता है जब वह स्वयं उस दौर से गुजरता है।
अभी वह चीत्कार करने ही वाला था किसी ने उसके बदन को जोर से झकझोर दिया।शरीर पर एकाएक घात लगने से उसका संवेश भंग हो गया। आंखें खुलीं तो सामने रमिया थी। वह पत्नी को आंखें फाड़- फाड़ कर देखने लगा। उसे यह देखकर घोर अचरज हुआ कि इस महादुख में भी वह सहज कैसे दिख रही है? अभी टुनका कुछ बोलता कि रमिया जरा हास मुख से बोल पड़ी – ‘क्या सोते ही रहोगे? अभी-अभी अस्पताल से फोन आया था।बाबू बोल रहे थे।बारह-तेरह का लड़का है। गंगा में डूबने से मरा है। मोटा आसामी है। कमाई मोटी होगी।’
रमिया की बात सुन टुनका मानो और विह्वल हो उठा। वह मन ही मन बड़बड़ाया – ‘ बारह-तेरह का लड़का! बिल्कुल बिरजू की उमर का। गंगा नदी में डूबकर मरा है! मोटा आसामी।मोटी ———— !’ उसके मस्तिष्क में स्वप्न का एक-एक मंजर चलचित्र की भांति चलने लगा। फ़िर न जाने वह एकाएक जोर से चीख पड़ा-‘ मेरा बिरजू कहां है? किधर है मेरा लाल?’
उसने अगल-बगल नजर दौड़ाई।पास ही खाट पर डिबरी की रोशनी में बिरजू को देखा। वह गहरी नींद से सो रहा था। उसने लड़के को पुचकारा फिर उसके पैताने में बैठ कर बकने लगा- ‘ नहीं, नहीं। बेटा बिरजू, अब और नहीं।तेरा बाप कसम खाता है। हां हां, तेरे नाम का कसम खाकर कहता है। आज से दारु और चीर-फाड़ के बदले रुपये लेना बंद। नहीं पियेगा यह टुनका दारु, अब कोई पाप नहीं करेगा। यह एक बाप का प्रण है।’ वह बिरजू का मुंह देख जोर-जोर से रोने लगा था।
रात के समय एकाएक टुनका के चीखने-चिल्लाने से आसपास के कई लोग माजरा जानने इकट्ठा हो गए।रमिया तो समझ ही रही थी कि उसके पति ने शायद नींद में कोई बुरा सपना देख लिया है। लेकिन लोगों को क्या समझाती। पूछने पर कहने लगी- ‘कुछ नहीं, बिरजू के बप्पा ने आज कुछ ज्यादा ही चढ़ा लिया था इसलिए शायद उसे दारु का डाक लग गया है।
संजीव प्रियदर्शी
फिलिप उच्च माध्यमिक विद्यालय, बरियारपुर, मुंगेर