आ..छी..ईईईईई ..।
ऊह…,हे..रे..भागता है की नहीं उधर ” दशरथ ओझा ने मंगलू के छींकने पर अपना मुंह बनाते हुए कहा।
“हे रबिया माय, रबिया माय”
रबिया माय आंगन के चूल्हा से आग निकालकर धूपधानी में डाल रहीं थीं ,सुनते ही उल्टे पांव दौड़ी। “अरे ! दुसरा फूल लाइये , खटकरमा (अपशगुन ) हो गया ! मंतर पढ़ने वक्त छिंक दिया आपका इ छोराऽऽऽ ” दशरथ ओझा मंगलू की ओर देखकर नाक भौं सिकोड़ते हुए कहा।
रबिया माय दौड़कर पड़ोसी रामचंदर के दरवाजे पर लगे अरहूल फ़ूल के गाछ के निकट पहुंची । जाते ही उसने पहले चुटकी बजायी मानो वह सोये गाछ को जगा रही हो ,और फिर एक थाली में फूल तोड़कर रखने लगी । खोखरन दाय अक्सर कहा करती हैं बगैर चुटकी बजाए , रात में अरहूल फ़ूल नहीं तोड़ना चाहिए । फूल के ऊपर डाकनी बैठती है ।
रबिया माय जब फूल तोड़कर वापस आई तो दशरथ ओझा ने उसे एक ग्लास पानी और पांच पत्ता तुलसी लाने को कहा । ओझा ने रबिया को पानी पढ़कर दिया ,तुलसी का पत्ता खिलाया , माथा हाथ भी दिया और अंत में मंतर मारकर अरहूल का फूल उसके तकिया के पास रखकर अपनी दक्षिणा ली , टार्च जलाया , लाठी संभाली और फिर अपने घर का रुख किया ।
रबिया चार दिन से बीमार है । वह बांस वाला मचान पर चिथड़ा ओढ़े कराह रहा है । रबिया की मां दबी जुबान से कहतीं हैं- ” जिस दिन से पोठिया वाली से झगड़ा हुआ है उसी दिन से मेरा रबिया का तबियत खराब हुआ है । इ सब करिश्मा पोठिये वाली का है , कर दी है मेरे बेटे को ।” रबिया माय अपना धन रोपनी वाला मजदूरी का सब पैसा ओझा -गुणी पर फूंक दी है , मगर रबिया के तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ है । अंत में थक हार कर उसने बेटे को गोद में उठाये काली थान पहुंची। बच्चें को जमीन पर लेटाकर आंचल फैलायें गहवर के सामने बिलखते हुए बोली- ” हे काली माय , हमर बच्चा के बचाय ले , हम एक जोड़ा छागर चढेबो …।”
लेकिन रबिया माय की सारी कोशिशें विफल रही । अगले रोज उसके बेटे की तबियत और बिगड़ गई । बेटे के लगातार बिगड़ते तबियत को देख रबिया माय जार-बेजार रोने लगी। आवाज सुनकर आस-पास के लोग एकत्रित हो गए। सबने उसे अस्पताल जाने की सलाह दी, मगर मदद को कोई आगे नहीं आया। अक्सर मदद वहां की जाती है जहां से प्रतिफल की गुंजाइश हो ।
सबसे बड़ा सहारा तो रबिया माय के मांघ का सिन्दूर रामलखन था जब वही दगाबाज हो गया तो दूसरे से क्या उम्मीद की जाय । पंजाब कमाने गया तो फिर वापस ही नहीं आया मालूम हुआ वो उधर ही दूसरी शादी कर बस गया है ।
बेटे को कंधे पर लेटाएं रबिया माय जब अस्पताल पहुंची तो डाक्टर ने रोगी को देखते ही अररिया रेफर किया। गनीमत ये रहा की उसे सरकारी एम्बुलेंस समय पर मिल गया।
अररिया सदर अस्पताल के परिसर में खड़ी ऊंची – ऊंची बिल्डिंग, को देखकर रमिया माय की धड़कनें और तेज हो गई , उसे एहसास हो गया था की उसका बेटा किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो गया है। इसलिए तो भरगामा अस्पताल का डाक्टर उसे अररिया भेजा है। ग़रीब आदमी रेफर का नाम सुनकर और भी बीमार हो जाता है।
वहां काफी हाथ -पैर मारने के बाद भी वह अपने बच्चे को अस्पताल में भर्ती नहीं करवा पाई थी । थक हार कर वह अस्पताल परिसर में बने बेंच पर बैठकर सिसकने लगी । चिथड़े में लिपटे मां -बेटे को देखकर किसी ने उसे भिखारी समझा तो किसी ने उसे दुखयारी तो किसी ने लाइलाज बीमारी का मरीज । मां को रोते देख बीमार बच्चा भी रोने लगा। उधर से गुजर रहे कुछ दयावान लोग ने मां-बेटे पर तरस खाकर उसे दस- बीस रुपये की आर्थिक मदद दी । कुछ इन्स्टाग्राम और सोशल मीडिया प्रेमी उसे रूपैये देते हुए उसके साथ फोटो शूट कर अपना पोस्ट भी डाला। कुछ ने इलाज के लिए उसे सही वार्ड तक पहुंचा कर उसके साथ अपना फोटो और वीडियो लिया ।
खैर रबिया का इलाज हुआ वह अगले रोज ठीक होकर जब वापस आने लगा तो बस स्टैंड में उसने अपनी मां से कहा — ” मां मनोज मास्टर का बेटा किथन कहता है की, हमलोग जब अररिया जाते हैं तो होतल में खूब बढ़िया -बढ़िया चीज खाते हैं । उ जो कल लोग थब पैसा दिया था उ पैसा से हमको भी बढ़िया -बढिया चीज खिलाओ न मां…..।
बेटे की तोतली आवाज मां के पांव को होटल की तरफ़ खींच कर ले गए
मां -बेटे बस स्टैंड के बगल वाले होटल में बैठकर ऐसे होस- होस कर खाना खा रहे थे मानो बरसों से भूखे हो ।
रबिया खाना खाते हुए अपनी मां से कहा – ” मां..फिर..बीमाल..पड़ेंगे.. तो..लोग..थब..फिल..टेका..देगा ने.. ते..फेल..होतल..में..खाएंगे ????
रबिया की मां बेटे की बात सुनकर स्तब्ध थी ।
उधर सूर्य पश्चिम की तरफ बढ़ रहा था शाम होने वाली थी जलाने वाली धूप अब फीकी पड़कर दीवारो से ऐसे चिपकी हुई थी मानो वो अंधकार से खुद को बचाने का अंतिम प्रयास कर रही हो ।
अरविंद कुमार,भरगामा, अररिया