गाँव
शहर की भीड़ भरी उमस से बरबस ही ध्यान खींचती है गाँव की हरी-भरी वादियां ।शहरों के कोलाहल आपा धापी घुटन चित्कार उहापोह अपनों के बीच भी एक अकेलापन अविश्वास व दहशत का माहौल कल की चिंता मशीनी जिंदगी से बेहतर अपना गांव जहाँ शांति है, शीतलता है, संबंधों मे अपनापन है, उम्मीद की किरण है, विश्वास का माहौल है,
दहशत से दूर समर्पण भरा जीवन है । आज भी गांव मे प्रेम है, भाईचारा है, परस्पर स्नेह, सहयोग की भावना है । गाँव प्रकृति का खुबसूरत सौम्य निश्छल रूप है जहाँ की हवा में ताजगी है सुगंध है । शहरों की प्रदूषित दमघोंटू जहरीली हवा का यहाँ नाम तक नहीं है । लहलहाती फसलें, सुनहरी आम्र मंजरी, बाग-बगीचे, उद्यानों के चिरहरित लता प्रतान से टकरा कर आयी इन हवाओं मेंं एक सुगंधित शीतलता युक्त कोमल एहसास है। यहाँ के खुले कुएं, चापाकल, नदी, तड़ाग के निर्मल नीर में अमृत सा मिठास है जिसे पीकर तन-मन संतृप्त हो जाता है ।
यद्यपि गांव की सड़क शहर जैसी चौड़ी व सपाट नहीं है तथापि इसकी सँकडी पगडंडी पर भीड नही है । इन पर चलते हुए ऊर्जावान कदम को धरती माता की सुरभित गोद का सुकून भरा एहसास होता है । अपनी माटी की सौंधी खुश्बू से मन मंदिर सुगंधित हो उठता है ।
गाँव जहाँ आज भी कृष्ण की बंशी के सुमधुर संगीत के साथ चरवाहे अपनी गैया को चराते हैं। वापसी मे ब्रज की गोधूलि का मोहक मनभावन दृश्य का क्या कहना। दूध, दही, घृत, फल, फूल, साग-सब्जी, अनाज आदि अपने शुद्ध रूप मे गाँव में आज भी उपलब्ध है ।
भारत की आर्य परम्परा आज भी गाँव में जीवित है । “अतिथि देवो भव” का सुमधुर भाव गाँव की शानदार परम्परा है । अनेकता मे एकता, सर्वधर्म समभाव की विरासत को गाँव अब भी अक्षुण्ण रखे हुए है तभी तो राम प्रसाद के घर रहमत काका का जाना होता है और शाहीन की आँगन में पूजा खेलती है । जाति, धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर गाँव में आत्मिक मैत्री प्रस्फुटित होती है ।
शहर के कमरे मे कैद बचपन जब गाँव पहुँचता है तो अरुणोदय की पहली किरण के संग जैसे बचपन लौट आया हो। चिड़ियों की चूं- चूं के साथ मस्त हो जाता है प्यारा सा बचपन ।जीवन के सम्यक स्वरूप को महसूस करवाता है गाँव । दरवाजे पर नीम, बरगद, पीपल आँगन की पवित्र तुलसी, अदरक, नींबू का काढ़ा पीकर दादी-नानी की लोरी के साथ उतना ही मीठा लगता है जितना गूंगे का गुड़। एक सुकून भरा एहसास जिसे शायद शब्दों मे बयां कर पाना बहुत बहुत मुश्किल है । ठिठुरन भरी रात में उपले की आग पर शकरकंद को पकाना, लिट्टी सेंकना और इसके चारों ओर सपरिवार का बैठना तथा नई पुरानी यादों को ताजा करना विश्वास भरे माहौल का खुबसूरत नमूना है ।
जीवनोपयोगी आवश्यक संसाधन- शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली आदि सहजता से आज उपलब्ध है गाँव में ।खेती-बाड़ी व इससे जुड़े उद्योग, गौ पालन, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन, मधु मक्खी पालन आदि से गाँवो की समृद्धि है। आपसी विवाद को स्थानीय स्तर पर पंचायत में सुलझा लेते है यहाँ के लोग । इससे जन धन की हानि से भी बचा जाता है। समय की भी काफी बचत होती है। गाँव के हाट बाट व खाट पर लोग कुछ वक्त ठहरकर आपसी सुख-दुःख को बाँटा करते है । घुंघट मे आई नव वधू के पावन पग की पायल की रुनझुन, आंगन की कच्ची माटी में ठुमकते नंदलाल शहर की बालकनी कहीं ज्यादा संरक्षित व सुरक्षित हैं । इस वैश्विक महामारी में भी शहर की अपेक्षा गाँव कहीं अधिक सुरक्षित रहा है ।
वक्त के साथ गाँव में भी बदलाव हुए हैं किन्तु इसने अपने सिद्धांत से कोई समझौता नहीं किया है ।भारत की गौरवशाली अतित इसकी वंदनीय संस्कृति आज भी गाँव मे जीवित है ।
दिलीप कुमार गुप्ता
प्रधानाध्यापक म. वि. कुआड़ी
अररिया बिहार
बहुत बढ़िया
गाँव का सजीव चित्रण के लिए सर जी को बहुत बहुत बधाई ।
बहुत सुंदर किये हैं गॉंव का वर्णन।। हार्दिक बधाई