गोपाल सिंह “नेपाली”
कर्णधार तू बना तो हाथों में लगाम ले, क्रांति को सफल बना नसीब का न नाम ले ! भेद सर उठा रहा, मनुष्य को मिटा रहा, गिर रहा समाज, आज बाजुओं में थाम
ले ! त्याग का न दाम ले, दे बदल नसीब तो गरीब सलाम ले!
कलम की स्वाधीनता के लिए आजीवन संघर्षरत रहे गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह “नेपाली”! धारा के विपरीत चलकर हिन्दी साहित्य पत्रकारिता और सिनेमा में उँचा दर्जा हासिल करने वाले विशिष्ट कवि और गीतकार थे!
गोपाल सिंह “नेपाली” (11अगस्त 1911-17 अप्रैल 1963) जी का जन्म बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बेतिया ग्राम में हुआ था! उनका मूल नाम गोपाल बहादुर सिंह था। उनकी काव्य प्रतिभा बचपन में हीं दिखाई देने लगी थी! काफी पहले उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। उनकी कविताओं में राष्ट्र प्रेम, प्रकृति प्रेम, रोमांस आदि दिखाई देता है। राष्ट्रवादी चेतना भी उनकी कविता में कूट-कूट कर भरी थी। सन 1962 के चीनी आक्रमण के समय में नेपाली जी ने कई ओजपूर्ण और देशभक्ति गीत लिखे उनमें से सावन, कल्पना, निलिमा, नवीन कल्पना करो प्रमुख हैं। पत्रिकाओं में “रतलाम टाइम्स, चित्रपट, सुधा और “योगी” का संपादन किया। उनकी मुख्य कृतियाँ :- उमंग, पंछी, रागिनी, नीलिमा, पंचमी, सावन, कल्पना, आंचल, नवीन, रिमझिम, हिमालय ने पुकारा है। हिन्दी में गोपाल सिंह नेपाली जी की रचनाएं :- 1. अपनेपन का मतवाला, 2. दूर जाकर न कोई बिसारा करे, 3. दो मेघ मिले, 4. नवीन कल्पना करो, 5. प्रार्थना बनी रहे, 6. बदनाम रहे बटमार, 7. बाबुल तुम बगिया के तरूवर, 8. भाई बहन, 9 मैं प्यासा भृंग जनम भर का, 10. मेरा देश बड़ा गर्वीला, 11. मेरा धन है स्वाधीन कलम, 12. मुस्कुराती रही कामना, 13. यह दीया बुझे नहीं, 14.बसंत गीत, 15. सरिता, 16. हिमालय और हम। उत्तर छायावाद के जिन कवियों ने अपनी कविता और गीतों की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया उनमें गोपाल सिंह नेपाली का नाम सबसे अगली पंक्ति में शामिल है।
गोपाल सिंह नेपाली की पहली कविता “भारत गगन के जगमग सितारे” 1930 में रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा संपादित बाल पत्रिका में प्रकाशित थी। किसी कवि सम्मेलन में गोपाल सिंह नेपाली जी ने जब मंच से अपनी रचना सुनहरी सुबह नेपाल की, ढलती शाम बंगाल! कर दे फींका रंग चुनरी का, दोपहरी नैनीताल!
क्या दरस परस की बात यहाँ, जहाँ पत्थर में भगवान है! यह मेरा हिन्दुस्तान है, यह मेरा हिन्दुस्तान है! प्रस्तुत किया तो रामधारी सिंह “दिनकर” भी वहाँ मौजूद थे, और नेपाली जी की गीत सुनकर गदगद हो गये। इतने लोकप्रिय गीत लिखने के बाद भी वे लंबे समय तक आर्थिक तंगी से घिरे रहे। आखिर में उनकी मुलाकात फिल्मिस्तान के तुलाराम जालान से हुई और उन्होंने नेपाली जी से अनुबंध कर लिया। उसके बाद नेपाली जी ने सर्वप्रथम फिल्म “मजदूर” के लिए गीत लिखे। उन्होंने करीब साठ फिल्मों के लिए 400 गीत लिखे।
उनकी रचना
बदनाम रहे बटमार मगर, घर तो रखवालों ने लूटा,
मेरी दुल्हन सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा!
आज भी साहित्य प्रेमियों की जुबान पर है। कविवर गोपाल सिंह नेपाली अपनी सहज मानवीय संवेदना व प्रेम के साथ राष्ट्रीयता के प्रखर गायक थे। आज के समकालीन परिवेश में कविवर नेपाली की प्रासंगिकता और बढ गई है लेकिन दुख की बात है कि हिन्दी साहित्य की पाठ्य पुस्तकों से उनकी रचनाएँ गायब हो रही है। उनके बारे में विशेष क्या कहूँ? जितना कहूंगी कम होगा! बस उनके जन्मदिवस पर इतना हीं कही।
स्वरचित :
मनु कुमारी
मध्य विद्यालय सुरीगांव
बायसी, पूर्णियाँ