लौटा दो मेरा स्कूल-कुमारी निरुपमा

Nirupama

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लौटा दो मेरा स्कूल

         रात के पौने दस बज रहे थे। मैं इसलिए देर से काली मंदिर गई थी ताकि भीड़ एकदम नहीं हो। जब मंदिर से बाहर आई तो एक आठ साल का छोटा लड़का दो बैलून स्टिक लगा हुआ लिए मेरे सामने आकर खड़ा हो गया।

बच्चा – चाची बैलून ले लीजिए।

मैंने कहा बैलून लेकर मैं क्या करूंगी। उसे इतनी रात गए बैलून बेचते देखकर भी मुझे आश्चर्य हो रहा था।

बच्चा – ले लीजिए न, अभी तक बैलून नहीं बिका है इसलिए घर भी नहीं जा रहा हूं। पैसा लेकर नहीं जाऊंगा तो पिताजी डांटेंगे और खाना भी नहीं मिलेगा।

मैंने पूछा- “तुम पढ़ते क्यो नही हो?”

बच्चा- स्कूल से सत्यापित फार्म लेकर गया और आधार कार्ड भी बना पर मेरे पिताजी शराब पीते हैं। उन्होंने कहा कि पढ़ने जाओगे तो काम कैसे करोगे। खाना कहां से मिलेगा। इसलिए वह मेरा आधार कार्ड फाड़ दिए। अब मेरा नाम कैसे लिखा जाएगा। कोई तो मेरा स्कूल लौटा दें। मेरे पिताजी बुरे नहीं है परन्तु नशा करने के कारण वह ऐसा करते हैं।

पहले तो मैं काफी मर्माहत हो गई उसकी बातें सुनकर। फिर मैंने उसे अपने पास बिठाकर समझाया कि हर चीज का उपाय है। आधार कार्ड फिर बन जाएगा मोबाइल के मैसेज से। फिर मैंने उसे बैलून लेकर रुपए दिए। फिर उसे घर जाने के लिए कहा। एक वादे के साथ कि तुम्हारा स्कूल जरूर लौटा दूंगी।
उसकी आंखों की चमक मुझे अब भी बेचैन करती है।

कुमारी निरुपमा

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