परिन्दों के मसीहा सालिम अली-हर्ष नारायण दास

Harshnarayan

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परिन्दों के मसीहा सालिम अली

         महान पक्षी विज्ञानी सालिम अली का जन्म 12 नवम्बर 1896 को सुलेमानी बोहरा मुस्लिम परिवार में खेतवाड़ी मुम्बई में हुआ था। उनका पूरा नाम सालिम मोइजुद्दीन अब्दुल अली था। जब वे एक साल के थे तब उनके पिता चल बसे। जब तीन साल के थे तब उनकी माता जिन्नत उन्नीसा चल बसी। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा बम्बई के सेंट जेवियर स्कूल में हुई। 1913 ईस्वी में मैट्रिक की परीक्षा पास की। जब वे दस साल के थे तो आकाश में उड़ती हुई गौरेया को देखता है और मार गिराता है। जैसे ही गौरेया जमीन पर गिरती है वह उसे दौड़कर उठा लेता है। इस पक्षी को वह गौर से देखता है और आश्चर्य में पड़ जाता है। इस गौरेया की गर्दन पर पीले धब्बे हैं जो उसने पहले कभी नहीं देखे। विचारों में डूबा यह बालक इस पक्षी को लेकर अपने अमरुद्दीन को दिखलाता है और उनसे पूछता है- यह कौन सी जाति की चिड़िया है, मामा? मामा भी बच्चे की जिज्ञासा शान्त नहीं कर पाते हैं। वे उसे मुम्बई की “नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी” के एक छोटे से कमरे में ले जाते हैं और उनका परिचय इस संस्था के सचिव डब्ल्यू० एस० मिलार्ड से कराते हैं। मिलार्ड एक भारतीय बच्चे की पक्षियों में इतनी रुचि देख आश्चर्य में पड़ जाते हैं। वे बच्चे को कमरे में सुरक्षित ढंग से रखे हुए भाँति-भाँति के पक्षियों को दिखाते हैं। इनसे बालक की पक्षियों के विषय में उत्सुकता और जिज्ञासा शान्त होने की बजाय और भी अधिक बढ़ जाती है। इसके बाद यह बालक रोजाना ही संग्रहालय में आने लगता है और चिड़ियों की पहचान करने तथा उन्हें सुरक्षित रखने की विधियां सीखने लगता है। उनके पास विश्वविद्यालय की कोई भी डिग्री नहीं थी क्योंकि गणित में रुचि न होने के कारण अपना अध्ययन जारी न रख सके। इन्हीं दिनों वे अपने भाई की वालफ्रेम तलाश करने के बजाय परिंदों को ही देखा करते थे। सन 1920 के के लगभग वे असफल होकर फिर मुम्बई वापस आ गए।

मुम्बई लौटकर उन्होंने जन्तु विज्ञान में एक कोर्स किया जिसके बाद मुम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के संग्रहालय में उनकी गाईड के रूप में नियुक्ति हुई। गाईड के रूप में वे मरे हुए सुरक्षित पक्षियों को दर्शकों को दिखाते और उनके विषय में बताते। इस कार्य के दौरान उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि पक्षियों के विषय में पूरी जानकारी तभी प्राप्त की जा सकती है जब उनके रहन सहन को नजदीक से देखा जा सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे जर्मनी गए और विश्व विख्यात पक्षी विज्ञानी डॉक्टर इर्विन स्टासमान के संपर्क में आए। एक वर्ष पश्चात जब वे जर्मनी से वापस भारत आये तो उन्हें पता चला कि उनकी संग्रहालय की नौकरी समाप्त हो गयी थी। 1918 में मुम्बई के तहमीना अली के साथ इनकी शादी हुई थी। उसके ही मकान में जाकर रहने लगे। उनके घर के अहाते में एक पेड़ था जिसपर बया ने एक घोंसला बनाया था। सारे दिन वे पेड़ के नीचे बैठे रहते और बया के क्रिया कलापों को एक नोट बुक में लिखते रहते थे। बया के क्रिया-कलापों और व्यवहार को उन्होंने एक शोध निबन्ध के रूप में प्रकाशित कराया। 1930 में छपा यह निबन्ध पक्षी विज्ञान में उनकी प्रसिद्धि के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। इसके बाद वे जगह-जगह जाकर पक्षियों के विषय में जानकारी प्राप्त करने लगे। इन जानकारियों के आधार पर उन्होंने “द बुक ऑफ इण्डियन बर्ड्स” लिखी जो सन 1941 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में पक्षियों के विषय में अनेक नई जानकारियाँ प्रस्तुत की गई थी। 1948 में उन्होंने विश्व प्रसिद्ध विज्ञानी डिलौंन रिप्ले के साथ एक प्रोजेक्ट आरम्भ किया जिसमें भारत और पाकिस्तानी पक्षियों के विषय में शोध कार्य करना था। इस शोध कार्य के के बाद जो निष्कर्ष आया, उसे “हैंडबुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ इंडिया एन्ड पाकिस्तान” के रूप में प्रस्तुत किया। इसके अलावे पक्षियों के ऊपर उन्होंने और भी पुस्तकें लिखी है। “द फॉल ऑफ ए स्पैरो” में उन्होंने अपने जीवन में घटी अनेक घटनाओं को प्रस्तुत किया है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी। वे भारत में एक पक्षी अध्ययन और शोध केन्द्र की स्थापना करना चाहते थे। इनके महत्वपूर्ण कार्यों और प्रकृति विज्ञान और पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में अहम योगदान के मद्देनजर बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा कोयम्बटूर के निकट अनैकट्टी नामक स्थान पर सालिम अली पक्षी विज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र 1990 में स्थापित किया गया। उन्हें 1958 में पद्मभूषण, 1976 में पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया।

उन्होंने उत्तराखंड के कुमांऊ में अपने भ्रमण के दौरान लुप्त हो चुकी बया पक्षी की एक अनोखी प्रजाति की खोज की थी। साइबेरियन सारस के ऊपर उन्होंने गहन शोध किया। उन्होंने अपने अध्ययन से सिद्ध किया कि साइबेरियन सारस शाकाहारी होता है।
सालिम अली ने पक्षियों के सर्वेक्षण के लिए 65 वर्ष से अधिक समय तक समस्त भारत का भ्रमण किया। परिन्दों के विषय में उनका ज्ञान इतना अधिक था कि लोग उन्हें चलता फिरता परिन्दों का विश्व-कोश कहते थे। इस महान पक्षी विज्ञानी का 20 जून 1987 को निधन हो गया। सालिम अली को आने वाली सदियां उनके अभूतपूर्व कार्य के लिए सदैव याद रखेंगे।
भारत के इस महान पक्षी विज्ञानी की याद में हर वर्ष 12 नवम्बर को राष्ट्रीय पक्षी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

प्रेषक-हर्ष नारायण दास
मध्य विद्यालय घीवहा(फारबिसगंज)
अररिया

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