परिश्रम का फल-भवानंद सिंह

परिश्रम का फल 

          किसी गाँव में एक बूढ़ा और गरीब किसान रहता था। गरीब इतना कि किसी को भी दया आ जाय लेकिन वह किसान बहुत मेहनती और परिश्रमी था। वह अपने परिवार और बच्चे की तरक्की तथा खुशहाली के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहता था फिर भी उसकी इतनी हैसियत नहीं थी कि वह अपने बच्चों को अच्छी तालीम दिला सके लेकिन उनके बच्चे अपने पिता की तरह ही मेहनती और आज्ञाकारी था। उनके बच्चे में सबसे बड़ा अमन, उसके बाद सुमन तथा सबसे छोटी प्रीति थी। ये बच्चे जब गाँव के बच्चों को विद्यालय जाते देखता तो उनकी भी इच्छा होती थी कि काश वे भी पढ़ पाते। लेकिन उनकी गरीबी उन्हें पढ़ने की इजाजत नहीं देता था। तभी बूढ़ा किसान को विद्यालय में चल रहे विभिन्न योजनाओं जैसे- मध्याह्न भोजन योजना, मुफ्त पाठ्य पुस्तक वितरण योजना, मुख्यमंत्री पोशाक योजना एवं छात्रवृत्ति योजना आदि के बारे में पता चला। तत्पश्चात वह किसान अपने तीनो बच्चों का नामांकन अपने ही गाँव के विद्यालय में उम्र सापेक्ष कक्षा मेें करा दिया । तीनो बच्चे मेधावी होने के साथ-साथ परिश्रमी भी था।  सभी बच्चे पूरी ईमानदारी और लगन से पढ़ाई करने लगे जिससे वह अपने शिक्षकों का भी चहेता बन गया। यदा-कदा ये बच्चे घरेलू कार्यो में भी अपने पिता का हाथ बँटाता रहता था।

देखते ही  देखते अमन प्रारंभिक शिक्षा अच्छे अंकों से पास कर लिया। इससे ऊपर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहर जाने की आवश्यकता थी क्योंकि उसके गाँव में उच्च शिक्षण संस्थान नहीं था।  अब तक अमन का उम्र भी लगभग 15 वर्ष हो चुका था। इधर उसके पिताजी काफी बूढ़े हो चुके थे और उसका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता था। तभी अमन ने यह फैसला किया कि वह अपने पिता के साथ मिलकर खेत पर काम करेगा और अपने छोटे भाई-बहन को पढ़ने के लिए शहर भेजेगा। वह अपने फैसले की बात उसने अपने पिता को बताया। पिता जी अपनी दीन-हीन अवस्था को देखते हुए अमन के फैसले को बड़े भारी मन से स्वीकार कर लिया। अब पिता और पुत्र दोनों मिलकर पूरी ईमानदारी से खेतों में काम करने लगे। इधर सुमन और प्रीति भी पूरी निष्ठा और मन लगाकर शहर जाकर पढ़ाई करने लगे। अब दोनों ही जगह सफलता के लिए संघर्ष होने लगा। इधर अपने भाई-बहन को पढ़ाने के लिए अमन खेतों में कठिन परिश्रम करने लगा उधर सुमन और प्रीति भी पूरी निष्ठा से पढ़ाई में कठिन परिश्रम करने लगे। इस तरह सुमन तथा प्रीति ने कठिन परिश्रम कर अमन की मदद से स्नातक की उपाधि प्राप्त कर अच्छी नौकरी प्राप्त कर ली। इस बात की जानकारी जब अमन और उसके बूढ़े पिता को मिली तो उसे बहुत खुशी हुई। इसकी जानकारी उन्होंने गाँव के लोगों को भी दिया। उस दिन उस गाँव में दिवाली के दिन जैसा उत्सव मनाया गया। हो भी क्यों न सुमन तथा प्रीति सरकारी नौकरी में जाने वाले उस गाँव के प्रथम विद्यार्थी थे। इसी बीच सुमन और प्रीति अपने माता-पिता तथा अमन का आशीर्वाद लेने के लिए घर आए। सभी भाई-बहन, माता-पिता एक दूसरे के गले लगकर खूब रोये लेकिन ये खुशी और संतोष के आँसू थे। अब अमन और उसके बूढ़े पिता का दिन सुख, शांति, अमन-चैन से बीतने लगा तथा गाँव के लोग भी अपने बच्चे को पढ़ाने का संकल्प लिया। सभी लोगों ने पढ़ाई के महत्व को समझा। अब उस गाँव के लोग खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह इसलिए संभव हुआ कि सुमन और प्रीति से प्रेरणा लेकर सभी ने अपने – अपने बच्चों को पढ़ाया।

परिश्रम से किसी को भी पीछे नहीं हटना चाहिए। इतिहास गवाह है कि परिश्रमी लोग ही हमेशा सफल हुए हैं।

भवानंद सिंह
उ. मा. वि . मधुलता
रानीगंज, अररिया

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