राजयोग 2-मधुमिता

Madhumita

राजयोग 2

         परमात्मा का सत्य परिचय। परमात्मा कौन है? कैसे हैं? उनके कर्तव्य क्या है? उनका स्वरूप क्या है? वो कहां रहते हैं? परमात्मा के स्वरूप को लेकर विभिन्न धर्मों की विभिन्न मान्यताएं हैं परंतु गहराई से देखा जाए तो प्रत्येक धर्म ने परमात्मा को एक तेजोमय दिव्य प्रकाश कहा है। साथ ही साथ सभी धर्मों ने यह इशारा किया है कि परमात्मा कहीं ऊपर रहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि वह ऊँच से ऊँच परम सत्ता सबसे ऊपर परमधाम में रहते हैं। जिसे ब्राह्मलोक या शान्तिधाम भी कहते हैं।

अब समझने वाली बात यह है कि परमात्मा की संतान हम आत्माएं एक ज्योति स्वरूप हैं तो निश्चित रूप से हमारा पिता भी हमारी ही तरह ज्योति स्वरूप होंगे।हम सभी जानते हैं कि जैसा बीज होता है वैसे ही फल की प्राप्ति होती है। अर्थात आम के बीज से कभी अमरूद का फल नहीं निकल सकता। उसी प्रकार हमारे पिता परम पिता परमात्मा जो सर्वशक्तिमान हैं, वो हम आत्माओं की तरह ही सूक्ष्म और प्रकाशमान हैं। वो इस सृष्टि के बीज रूप हैं। हम आत्माएं उन्हीं की संतान हैं। जिस प्रकार एक पिता अपने बच्चों का कभी बुरा नहीं चाहते, कभी अपने बच्चों को कष्ट में नहीं देख सकते, उसी प्रकार परमात्मा भी कभी हमारा बुरा नहीं चाहते, कभी हमें कष्ट में नहीं देख सकते। वह सदा हमें सही मार्ग दिखाते हैं, सत मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं पर हम बच्चे उनकी शिक्षाओं को भूलकर अपने ही विकर्मों में उलझकर रह जाते हैं और जब विकर्मों का फल हमें प्राप्त होता है तो हम सारा दोष परमात्मा को देते हैं। म बच्चों की यही भूल आज इस संसार में दुख और अशांति का सबसे बड़ा कारण है। अब जब कारण का पता चल चुका है तो क्यों ना हम निवारण करें। स्वयं को आत्मा निश्चय कर जब हम अपने परम पिता परमात्मा को उनके वास्तविक स्वरूप में याद करते हैं तो उनकी शक्तियां हमारे अंदर प्रवाहित होने लगती है। हम आत्माओं की सोई हुई शक्तियां जाग उठती है और हम स्वयं को बहुत शक्तिशाली अनुभव करने लगते हैं। हमारा अशांत मन शांति के सागर को याद करते ही शांत हो जाता है। र्वशक्तिमान की शक्तियों का प्रभाव न केवल स्वयं के शरीर पर पड़ता है बल्कि पूरे वायुमंडल पर पड़ता है।

राजयोग सबसे सहज योग है। अन्य सभी बातों से किनारा करते हुए स्वयं को भृकुटि के मध्य जगमगाता हुआ सितारा देखकर, उसी स्थिति में कुछ देर के लिए अपने देह को भूल जाएं, और ज्योति बिंदु परमपिता परमात्मा को अपने मन की आंखों से देखें और उनसे अपने मन की बातें करें, जैसे आप अपने माता-पिता से बात करते हैं और महसूस करें कि परमात्मा की दिव्य किरणें सूर्य की किरणों की तरह मुझपर बरस रही है। आप सबकुछ भूलकर भीगते रहे परमात्मा की किरणों में, कुछ ही पलों में आपको असीम शांति की अनुभूति होगी

ब्रह्मकुमारी मधुमिता ✍️✍️
पूर्णिया (बिहार)

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