रक्षाबंधन
रक्षा बन्धन का त्योहार बदलते हुए मान मूल्यों का दर्पण है।पौराणिक इतिहास के अनुसार सबसे पहले राखी इन्द्राणी ने इन्द्र के हाथ में बाँधी थी।ब्रह्म हत्या के पाप से त्रस्त इन्द्र स्वर्ग से निष्कासित थे।नहुष के शासन में इन्द्र की पत्नी शची दुःखी थी।देवगुरु बृहस्पति की सलाह से उन्होंने अपने कल्याण और अभ्युदय की इच्छा से आदि शक्ति की उपासना कर उन्हें प्रसन्न किया।त्रिगुणात्मिका पराशक्ति के शुभाशीष की शक्ति को कच्चे सूत के तिहरे धागे में संकल्पित कर उन्होंने अपने पराजित और हतोत्साहित पति के दाहिने हाथ में बांध दिया।दाहिना हाथ कर्मठता का प्रतीक है।योगशास्त्र के अनुसार दाहिने हाथ में पिंगला नाड़ी रहती है, जो कर्मठता, भविष्य के नियोजन तथा शारीरिक-मानसिक ऊर्जा को संचालित करती है।बल और ओज देने वाली यह राखी इन्द्र का बल बनी और उन्होंने अपना खोया राज्य और स्वाभिमान को प्राप्त कर लिया।
इतिहास बताता है कि मुगलकालीन बादशाह हुमायूं को रानी कर्णावती ने राखी भेज कर अपनी रक्षा के लिये आग्रह किया था।
रक्षा बन्धन “रक्षा” का बन्धन है इसलिये इसके अनेक रूप प्रचलित है।यही कारण है कि कहीं कहीं पत्नियां भी अपने पति की कलाई पर राखी बाँध कर अपनी रक्षा का वचन लेती हैं।दूसरी तरफ पुरोहित वर्ग भी अपने यजमानों के हाथ में रक्षा सूत्र बाँधते हुए निम्न श्लोक पढ़ते हैं-
येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेनस्त्वाम प्रतिबधनामि, रक्षो माचल माचल ।।
आज के समय में रक्षाबन्धन अपने प्रचलित रूप में भाई-बहनों का ही पर्व है, जिसमें बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा कवच बाँधकर अपनी अशेष शुभकामनाओं की अमृतवर्षा करती हैं।साथ ही भाई के दीर्घ जीवन,स्वास्थ्य और उत्थान की कामनाएं करती हैं तो प्रत्युत्तर में राखी के धागों से बंधा भाई प्राणपण से अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है।
राखी के धागे होते तो कच्चे धागे ही हैं, किन्तु इन धागों में प्यार और विश्वास बंधा होता है।आपके लिये बहन के हृदय का प्यार और आपके प्रति उसका अखण्ड विश्वास।लौहशृंखला को झटककर तोड़ देना आसान हो सकता है ,किन्तु इस प्रेम और विश्वास के बन्धन को तोड़ना संभव नहीं होता।
हर्ष नारायण दास
प्रधानाध्यापक
मध्य विद्यालय घीवहा।
अंचल–फारबिसगंज(घीवहा)