साधना
अरी ओ छोरी ! कहाँ चल दी ? जैसे ही साधना बस्ता लेकर घर से बाहर निकली उसकी सौतेली माँ ने पूछा। स्कूल जा रही हूँ अम्मा, साधना ने जवाब दिया। घर में इतने सारे काम है करने को और तुझे स्कूल की पडी है। कपडे धोने को है, कुएँ से पानी लाना है, बर्तन भी साफ करना है, ये सब कर लो फिर चली जाना स्कूल, अम्मा ने कहा। तब तो बहुत देर हो जाएगी अम्मा, वैसे भी खाना बनाने की वजह से पहले ही देर हो चुकी है, साधना ने मायूसी से जवाब दिया। ज्यादा नखरे न कर, कौन सा पढ़-लिख कर तू कलक्टर बनेगी, सारे काम कर नहीं तो तेरा स्कूल जाना बंद। फिर क्या था साधना को सारे काम करने पड़े। साधना की माँ का पिछले साल ही देहांत हो गया था, अभी दो महीने पहले ही उसके पिताजी ने दूसरी शादी की थी। शुरू में तो उसकी सौतेली माँ का बर्ताव ठीक ही था फिर बाद मे वह साधना पर जुल्म ढाने लगी। साधना के पिताजी काम के सिलसिले में अक्सर घर से बाहर ही रहते थे हालांकि उसकी माँ पिताजी के सामने में उसे कुछ नहीं कहती थी, प्यार से बर्ताव करती थी लेकिन उसके बाहर जाते ही सौतेली माँ के रंग बदल जाते। उधर स्कूल पहुँचने पर …..क्या बात है साधना ? आज तुम फिर लेट से स्कूल आई हो, ऐसा रोज- रोज नहीं चलेगा। साधना के कुछ बोलने से पहले ही उसकी सहेली दिव्या ने कहा- इसकी सौतेली माँ इससे घर के सारे काम करवाती है इसलिए इसे रोज देर हो जाती है। ये सुनकर उसके शिक्षक ने कुछ सोचा और साधना को बैठने का इशारा किया।
अगले दिन शिक्षक साधना के घर पहुँचे। उन्होंने साधना के पिताजी से कहा- साधना पढने मे बहुत होशियार है। मैं सोच रहा हूँ कि इसका नवोदय का फार्म भरवा दूँ। आपकी क्या राय है ? यह सुनकर उसके पिताजी ने खुश होकर इजाजत दे दी। कुछ दिनों के बाद उसकी सौतेली माँ की तबीयत बहुत खराब हो गई। साधना ने उनकी बहुत सेवा की क्योंकि वह अपनी एक माँ खो चुकी थी और दूसरी खोना नहीं चाहती थी। उसके सेवा भाव को देखकर उसकी माँ भी उससे बहुत प्यार करने लगी और उसे साधना के साथ किये गए बुरे व्यवहार के लिए शर्मिंदगी भी महसूस हो रही थी। कुछ महीनों के बाद नवोदय की परीक्षा भी हो गई और जब रिजल्ट आया तो साधना भी पास कर गई थी। साधना पढने के लिए शहर चली गई। समय पंख लगाकर उडता गया और आज तीस सालों के बाद साधना वापस अपने गाँव आई है लेकिन इस बार वो साधारण साधना नहीं बल्कि IPS साधना बनकर। जब गाँव के ही मुखिया और विधायक ने साधना का स्वागत मालाओं से किया तो वहाँ उपस्थित लोगों के तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा आसमान गूंज उठा।
कुमारी अनु साह