सुंदर लिखावट कला या विज्ञान- अरविंद कुमार

महात्मा गांधी ने कहा था खराब लिखावट अधूरी शिक्षा की निशानी है। दरअसल उनकी लिखावट अच्छी नहीं थी और इस बात का अफसोस उन्हें जीवनपर्यंत होता रहा। हम सब भी इस बात को जरूर स्वीकार करेंगे की अच्छी लिखावट पढ़ने एवं लिखावट का मूल्यांकन करने में ज्यादा असरदार होती है। विभिन्न परीक्षाओं में भी अगर लिखे गए वाक्य अपठनीय होते हैं तो बहुत बार उन्हें पढ़े बगैर मूल्यांकन कर दिया जाता है। इसमें खराब लिखावट देखकर या तो उस लिखावट के गुणवत्ता को परखे बगैर कम अंकन कर दिया जाता है अथवा कभी-कभी मात्र लिखी गई पंक्तियों की संख्या के आधार पर उनका आकलन कर दिया जाता है ।
बहरहाल जो भी हो खराब लिखावट सबको बुरी लगती है और अच्छी लिखावट दिल खुश कर देती है। मोतियों जैसे चमकते अक्षर प्रारंभिक स्तर पर विद्यार्थी को श्रेष्ठ दिखला देता है। लेकिन यह लिखावट आखिर अच्छी हो कैसे, चिंतनीय विषय है ? क्या अच्छी लिखावट एक कला मात्र है अथवा इसका वैज्ञानिक पहलू भी है?
इन बातों को समझने के लिए सबसे पहले हम प्रयोग के तौर पर हम जिस हाथ से लिखते हैं उसके उलट हाथ से मात्र क से ज्ञ तक अथवा A से z तक लिखकर तो देखें। हमें असुविधा महसूस होगा अथवा हाथ में दर्द भी महसूस होगा। ठीक यही बात उन बच्चों के साथ भी होती है जो अभी प्रारंभिक अवस्था में लिखना शुरू करते हैं। ठीक वैसा ही जैसे दौड़ने की शुरुआत करने वाला या जिम जाने वाला प्रारंभिक अवस्था में शरीर में दर्द महसूस करता है। तो निश्चित रूप से अच्छी लिखावट वैज्ञानिक पहलू भी है और वह है मस्तिष्क द्वारा दिये गई आदेशों का सफलतापूर्वक और जितनी जल्दी हो सके अनुपालन किया जाना।
तो सबसे पहले जिन बच्चों के हाथ में हम पेंसिल या कलम पकड़ना शुरू कराते हैं उन्हें अक्षर लिखने के प्रयास के बदले क्षैतिज ,आड़े और तिरछी रेखाओं का क्रमिक रूप से प्रैक्टिस कराया जाना नितांत आवश्यक है। तत्पश्चात क्लॉकवाइज और पुनः एंटी क्लॉकवाइज वृताकर आकृति बनाना शामिल है। ऐसा करने से हमारे हाथ का वह कौशल विकसित हो जाएगा जिससे मस्तिष्क के आदेश पर अक्षरों के घुमाव, उनके लिखावट के तरीके का अंकन शुद्धता के साथ और स्थिरता के साथ कर सकेगा। बहुत सारे लोग सुलेख लेखन के कार्य को बच्चों के लिए बेवजह का समय बिताया जाना मानते हैं ,परंतु जब बच्चा पढ़ना एवं लिखना शुरू करता है ,खासकर पाँचवीं -छठवीं तक तो सुलेख लिखा जाना नितांत ही आवश्यक है। हो सकता है बच्चा शुरू में अच्छी लिखावट धीरे-धीरे लिख सके, लेकिन जैसे ही उसका वह स्किल डेवलप (कौशल विकास) हो जाएगा, लेखन सुधर जाएगा। साथ ही अच्छी लिखावट में गति भी प्राप्त हो जाएगी। इस मोबाइल और लैपटॉप के युग में हाथ से लिखा जाना कम होना कहीं न कहीं प्रशासनिक सेवाओं के परीक्षाओं में अधिक लिखे जाने के अवसर पर छात्रों को कई सारी कठिनाइयों से रूबरू कराता है। अतः अच्छी लिखावट पर उसके वैज्ञानिक पहलू को समझ कर प्रारंभ से ही ध्यान दिया जाना नितांत आवश्यक है।


अरविंद कुमार , प्रधानाध्यापक

गौतम मध्य विद्यालय न्यू डिलिया, देहरी, रोहतास

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