खट-खट की आवाज सुन कर सुनीता ने कहा, “नैना देखो तो दरवाजा पर कोई आया है।”
“मां, पार्सल वाले भैया हैं”, सुनीता आश्चर्य से बोली।
“पार्सल वाले क्यों?”
“पता नहीं मां” – नैना ने कहा।
“क्या हुआ भाई साहब”- सुनीता ने कहा ।
“सुनीता देवी का पार्सल है।”
पर मैंने तो कोई पार्सल आर्डर नहीं किया।नैना दरवाजे के पास खड़ी मंद -मंद मुस्कुरा रही थी। मां देखो तो सही पार्सल तुम्हारे नाम से है तो रख लो ना बेटी की बात सुन सुनीता ने पार्सल रख लिया।
“क्या है देखो तो इसमें?” सुनीता ने जैसे ही पार्सल खोला तो अवाक हो गई।
उसमें बहुत सुंदर-सा हारमोनियम रखा हुआ था और एक प्यारा सा कार्ड जिसमें हैप्पी मदर्स डे लिखा हुआ था। मां आपने मेरे लिए अपने जीवन की सभी खुशियां त्याग दी आपको गाने का शौक था आपने अपनी हारमोनियम को मेरी देखभाल के लिए बेच दिया था ना। मां मेरी पूरी बात सुने ही गुस्से से बोली इतना महंगा हारमोनियम तुमने कहां से लाया। तभी घर पर नैना की दोस्त आई और उसने कहा कि चाची जी नैना स्कूल के बाद ट्यूशन पढ़ा कर अपने पैसे जमा करके उसी से यह हारमोनियम मंगवाया है ।
सुनीता की आंखें डबडबा गई उसने नैना को पकड़ कर गले लगा लिया। नैना भी खुशी के आंसू पोछते हुए मां से पूछा- “आपको यह पसंद आई ना मां।”
मां ने कहा- “धन्य हूं मैं तुम्हारे जैसी बेटी पाकर।”
मैं भी बहुत खुशकिस्मत हूं कि भगवान ने मुझे आप जैसी मां उपहार में दिया । नैना जब दो महीने की थी तभी उसकी मां गुजर गई थी, उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली पर उसकी सौतेली मां उससे बहुत प्यार करती थी। उसने नैना को कभी भी सौतेला बच्चा नहीं समझा। हमेशा उसे अपनी बेटी की तरह प्यार किया। फिर 2 साल बाद नैना के पिताजी भी गुजर गए अब तो जैसे मानो पहाड़ जैसी जिंदगी गुजारना मुश्किल था सुनीता के लिए।
सुनीता की मां ने कहा इसे अनाथ आश्रम छोड़ आओ मैं तुम्हारी दूसरी शादी करवा देती हूं। सुनीता गुस्से से बोली मां मैं इस बच्चे की खातिर अपने बच्चे नहीं लिए यह बच्ची मेरे पति की निशानी है और आप इसे छोड़ देने को कहती हैं। मुझे नहीं रखना है तो मत रखो मैं अपनी बेटी की परवरिश अच्छी तरह से कर सकती हूं। सुनीता के पास एक हारमोनियम था जिसे नैना की लालन- पालन की खातिर बेच दिया। उनसे जो पैसे हुए उसे वह छोटा-मोटा ब्यूटी पार्लर खोल ली जिससे किसी तरह से खुद का और अपनी बेटी का पेट भरने लगी। धीरे-धीरे उसके रोजगार में तरक्की हुई। वह बहुत मेहनत करके नैना को पढ़ाने लगी। नैना अभी उच्च- माध्यमिक में बहुत अच्छे अंक प्राप्त कर एक अच्छे से कॉलेज में दाखिला प्राप्त की थी। तभी ही वह ट्यूशन भी पढ़ने लगी। इसलिए क्योंकि नैना ने एक दिन अपनी मां को गाना गाते हुए सुना था। वह समझ गई कि मेरी मां गाना बहुत अच्छा गाती थी और उन्हें हारमोनियम पर गाने का बहुत शौक था उसने अपनी मां की तस्वीर देखी थी। तभी उसने ठान लिया मुझे अपनी मां को यह हारमोनियम उपहार में देना है। आज मदर्स डे से तो अच्छा अवसर तो और कोई था ही नहीं दोनों मां -बेटी गले मिलकर खुशी के आंसू निकालते रहे।
सचमुच मां तो मां होती है जो अपने बच्चों को निश्चल, निस्वार्थ प्रेम और ज्ञान देती रहती है।
लवली कुमारी
उत्क्रमित मध्य विद्यालय अनूपनगर
बारसोई, कटिहार