“योग “मनुष्य मात्र का जीवन लक्ष्य – रौशन वर्मा

रौशन वर्मा

जन ‐जन के मन में ,

प्रज्जवलित हो दीप योग का ।

रहे रोग -मुक्त मानव-समाज और कल्याण हो विश्व का ।

तन निरोगी,

मन निरोगी,

आत्मा का कण-कण निरोगी ।

चमत्कार होता यह अदभुत योग से,

संदेश मां भारती का यह, हो रहा मुखरित धरा पर,

पूरे जोश से ।

योग शब्द को उच्चरित करते ही हमारे मानस पटल पर तपस्या रत साधु की तस्वीर उभर आती है।

योग शब्द का शाब्दिक अर्थ जोड़ है। जिस तरह अंको का जोड़ गणित का विषय है उसी तरह योग के अंतर्गत हम देखते हैं कि आत्मा का परमात्मा से जुड़ना ही योग है।

अब सवाल उठता है कि आत्मा का परमात्मा से जुड़ाव कैसे हो? इसके लिए ही भिन्न-भिन्न देशों में अलग-अलग धर्मो ,पथों और साधना -पद्धति का विकास हुआ।

महर्षि पतंजलि ने योग के द्वारा जीवन को अनुशासित करने के उद्देश्य से ” चित्र वृत्ति निरोध योग : ” की अवधारणा व्यक्त की है अपने चित्त की वृत्तियों का निरोध करने के उद्देश्य से ही उन्होंने अष्टांगिक योग की चर्चा की है ।अष्टांगिक योग के द्वारा उन्होंने आठ सोपिन बताएं ,जिसके मार्ग पर चलकर हम तन ‐मन और अपनी बुद्धि को शुद्ध करते हुए इनका विकास करके ईश्वरत्व से सहज ही जुड़ सकते हैं । यह 8 सोपान हैं – यम, नियम, आसन ,प्राणायाम ,प्र त्याहार, धारणा , ध्यान और समाधि।

यम के द्वारा शारीरिक शुद्धि, नियम के द्वारा मन की शुद्धि करते हुए हम विभिन्न आसन के द्वारा अपने शरीर को निरोगी बनाते हुए प्राणायाम के साथ अपने मन को एकाग्र और धैर्यवान बना सकते हैं।

तन के स्वास्थ्य और मन के एकाग्र होने से ही व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व का आधारभूत विकास संभव है। इससे जहां एकओर हमारे शरीर को रोग से लड़ने की क्षमता की बढ़ोतरी होती है, वहीं दूसरी ओर प्राणायाम के द्वारा हमारे मन की शक्ति में चमत्कारिक परिवर्तन होते हैं, तब हम इसके द्वारा बड़े से बड़े रोग से भी लड़ने की क्षमता रखते हैं और साथ ही हर परिस्थिति में खुद को ढाल लेने की क्षमता का भी विकास होता है ,जो खुशनुमा जीवन की आवश्यक शर्त है।

योग की महत्ता और इसके प्रति विश्व जागरण के उद्देश्य से ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा 21 जून को की गई है। विगत 9 वर्षों से हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के पहल से पूरे विश्व में योग दिवस मनाया जा रहा है। कहना नहीं होगा कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के माध्यम से संपूर्ण विश्व को शारीरिक ,मानसिक और बौद्धिक स्वास्थ्य के प्रति जन- जागरण का आवाह्नन करते हुए “वसुदेव कुटुंबकम् “की भावना भी प्रतिष्ठित की जा रही है।

हाल ही में कोविद-19 पूरे विश्व में वैश्विक महामारी के रूप में कोहराम मचाता रहा है। ऐसी विषम परिस्थिति में भी योग के निरंतर अभ्यास के द्वारा हम अपनी शारीरिक क्षमता को बढ़ाते हुए निरोग रहने के संकल्प मात्र से अपने परिवार और समाज की चुनौती का सामना कर सकते हैं।

कोई भी बीमारी हमारे लिए तभी ज्यादा घातक बन जाती है जब हमारे तन और मन दोनों की शक्ति क्षीण होने लगती है “योगा केवल वह दवा नहीं है जो एक बीमार व्यक्ति को खिलाया जाए, बल्कि यह ऐसी जीवन शैली है जिसका पालन यदि हम तटस्थता एवं निष्ठा पूर्वक करते हैं तो यह हमारे शरीर को बलवान बनाते हुए हमें मानसिक स्वास्थ्य के साथ समग्र मानसिक शांति प्रदान करती है ,योग मनुष्य मात्र का जीवन लक्ष्य है।

आज संपूर्ण विश्व बौद्धिक प्रगति के बावजूद भी असुरक्षा और भय के वातावरण में जीवन जी रहा है ।ऐसी परिस्थिति में “योगा ” की हमारे समाज में प्रासंगिकता और भी रेखांकित होती दिखती है, क्योंकि यही वह साधन है जिसके द्वारा हम शारीरिक, मानसिक और आत्मिक उन्नति करते हुए संपूर्ण विश्व में एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं ऐसे में मनुष्यता को अपने निज स्वभाव में रहकर स्वास्थ्य के साथ आत्मिक शांति भी प्राप्त हो सकेगी। 

 #मैं-हूं-योगदूत #i-am-yogdut

लेखिका___ रौशन वर्मा- शिक्षिका -मनेर

Girl’s High School Maner

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