दूसरा भगवान – संजीव प्रियदर्शी

Sanjiv

परामर्श शुल्क के अभाव में दो बार क्लीनिक से लौटाये जाने के बाद वह तीसरी दफे रुपये जुटाकर अपने दस वर्षीय लड़के को दिखाने आई थी।कई लोगों ने बताया था कि शहर में यही एक डॉक्टर हैं जो तुम्हारे लड़के का मर्ज ठीक कर सकते हैं।पर डाक्टर था कि परामर्श शुल्क तथा इलाज आदि पर भारी रकम मरीजों से वसूलता । उसके हृदय में तनिक भी दया नहीं थी।
डॉक्टर ने लड़के का परीक्षण किया और इलाज पर बीस हजार का खर्च बता दिया। पर स्त्री तो बेहद निर्धन और फटेहाल थी। वह डॉक्टर से अपनी व्यथा सुनाने लगी- ‘ साब, मेरे पास जो भी रुपये थे, आपके कंपाउंडर पहले ही रख लिए हैं। अब तो मेरे पास मात्र सौ- दो सौ ही बचे हैं। मेहरबानी करके आप मेरे बच्चे की जान बचा लीजिए साब।’
डॉक्टर स्त्री को कंगली जान उसे फटकारते हुए गरजा- ” रुपये नहीं हैं, फिर यहां क्यों चली आती है? तुझे मालूम होना चाहिए कि यहां सिर्फ पैसे वालों को ही सेवा दी जाती है, भिखारियों को नहीं।जाओ, कहीं और जाकर लड़के का इलाज करवा लो।’
स्त्री काफी रोई- गिड़गिड़ाई पर डाक्टर पर कोई असर नहीं हुआ। वह स्त्री को लड़के सहित अपने क्लीनिक से जबरन बाहर निकलवा दिया। साथ ही परामर्श शुल्क के रुपये भी यह कहकर लौटाने से मना कर दिया कि उसके द्वारा वक्त जाया करने से उसे दो- तीन मरीजों के बराबर रुपये का नुक़सान हो गया है।
डॉक्टर के लिए यह घटना सामान्य थी, पर महिला के लिए तो मृत्यु से भी गहरी पीड़ादायक थी। परन्तु एक वाकया ने डॉक्टर की मनोवृत्ति को उलटकर रख दिया। यह कि रात में जब वह गहरी नींद सो रहा था तभी स्वप्न में उसके सामने एक देवी मां प्रगट होकर कहने लगी – ‘ डॉक्टर, संसार तुझे दूसरा भगवान के रूप में जानता है, पर आज तूने जो अपकृत्य किया है , वह तुम्हारे धर्म और गरिमा दोनों को कलंकित कर दिया । जानते हो? वह पीड़ित स्त्री कोई और नहीं, पूर्व जन्म की तुम्हारी मां तथा वह लड़का तुम्हारा भाई था। इस दुस्साहस के लिए तुझे मैं शाप देती हूं कि अगले जन्म में तुम भी इसी लड़के की भांति रोग ग्रसित होकर बिलबिलाते फिरोगे और तुझे कोई मदद करने वाला नहीं मिलेगा।’
स्वप्न देखकर डॉक्टर भीतर तक डर गया।धन और पद के अहंकार में चूर रहने वाला एक रुह के सामने थर-थर कांपते हुए अपने पापों से मुक्ति की भीख मांग रहा था। उसे खूब गिड़गिड़ाते और अपने पर बेहद लज्जित देख देवी मां बोली – ‘ इस अपराध से त्राण पाने का एक ही उपाय है, दीन दुखियों व असहायों की सेवा।’
जब डॉक्टर स्वप्न से जागा तो उसका मनोभाव बिल्कुल बदल चुका था। तत्काल अपने कर्मियों को यह आदेश जारी कर दिया कि आज से उसके यहां गरीब -लाचारों की मुफ्त सेवा की जायेगी।
कुछ ही दिनों में अपनी निस्वार्थ सेवा और उत्कृष्ट दीन- प्रेम से इलाके में उसकी जय-जयकार होने लगी। अब उसे कोई दीनबंधु कहता तो कोई दूसरा भगवान।

संजीव प्रियदर्शी ( मौलिक)

फिलिप उच्च माध्यमिक , बरियारपुर, मुंगेर

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