फर्ज- संजीव प्रियदर्शी

Sanjiv

एक लघुकथा

चोर-चोर का शोर सुनते ही अपनी जान पर खेलकर भाग रहे लड़के के पीछे लोग दौड़ने लगे थे। कुछ ही देर बाद सड़क पर हुजूम खड़ा था। लड़के का भीड़ के हाथों चढ़ते-चढ़ते पुलिस आ गई थी। उसने लात-घूंसे खा रहे लड़के को किसी भांति अपने कब्जे में लेकर भीड़ को तितर-बितर कर दिया। लड़के की उम्र कोई ग्यारह-बारह वर्ष थी और वह अपनी पैबंद लगी मैली- कुचैली कमीज के नीचे कुछ छिपाने का बार-बार यत्न कर रहा था। जब पुलिस छिपाई गई चीज दिखाने को कहती तो वह जोर-जोर से चीखने-चिल्लाने लगता। कुछ देर बाद वह दूकान दार भी आ धमका जिसने लड़के पर चोरी का इल्ज़ाम लगाकर शोर मचाया था।आते ही पुलिस के इंस्पेक्टर से बोला-‘साहब,यही है वह बदमाश जिसने मेरी दूकान से चोरी करके भागा है।इसे छोड़ना मत साहब।’ इंस्पेक्टर को अब पूर्ण विश्वास हो गया कि छोकरे ने अवश्य चोरी की है। उसने थोड़ी कराई से डांट कर पूछा – ‘ऐ छोकरा,अन्दर क्या चुरा रखा है? बाहर निकाल।’ ‘ मैंने चोरी नहीं की है, साहब।’ – वह लगभग बिलखते हुए बोला। लड़के के चेहरे पर मासूमियत देख इंस्पेक्टर थोड़ा थमाऔर पहले उसका नाम-ठिकाना पता करना उचित जान प्रश्न किया – ‘तुम्हारा नाम क्या है?’ ‘जी, मंगू है साहब।’ ‘और बाप का ?’ ‘माँ- बाप अब नहीं रहे साहब।वे कोरोना में गुजर गए।’ – लड़का थोड़ा रुआँसी से बोला। ‘ओह! क्या काम करते थे वे?’- इंस्पेक्टर चेहरे पर जरा शोक के भाव लाते हुए पुनः प्रश्न फेंक दिया था। ‘भीख मांगा करते थे।’ ‘कहां रहते हो?’ ‘यहीं पास की भिखारी पट्टी में।’ ‘ फिर तुमने चोरी क्यों की?’ ‘मैने चोरी नहीं की साहब। यह आदमी झूठ बोल रहा है।’ – लड़का विश्वास भरे लहजे में बोलते हुए दूकान दार की तरफ इशारा किया जिसे सुनकर वह कुछ सहम-सा गया। ‘ फिर कमीज के भीतर क्या है? दिखला दो। कुछ नहीं करुँगा।’- इंस्पेक्टर के स्वभाव में बदलाव देख मंगू बोलने लगा -‘यह मैंने छोटू के लिए ले रखा है। वह कई दिनों से रो रहा था। आज तो जिद ही पकड़ ली उसने।कहा,जब तक लाकर नहीं दोगे,खाना नहीं खाऊंगा। चार साल के अबोध का मेरे सिवा भला कौन है इस दुनिया में ? पर आज भीख में मात्र चालीस रुपए ही मिले थे। सो मैंने आधी कीमत देकर बाकी कल देने का वचन दिया। परन्तु जब इसने नहीं माना तो लाचार होकर मुझे यह रास्ता चुनना पड़ा।’- इतना बोलकर मंगू ने छिपाकर रखी चीज सबके सामने निकालकर रख दिया। कुछ समय पूर्व जिस भीड़ की आँखों में अंगारे दहक रहे थे, सामने भाई के लिए ‘हिन्दी बाल पोथी’ देख अब उनसे अश्रु टपकाने लगे थे।

संजीव प्रियदर्शी , फिलिप उच्च मा० विद्यालय बरियारपुर, मुंगेर

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