लघुकथा
सुनीता अपनी ननद की लड़की की शादी में काफ़ी लल्लो-चप्पो के बाद जाने को राजी हुई थी।ननद शोभा और ननदोई सुनील शादी-विवाह का घर होते हुए भी सुनीता का विशेष ख्याल रखते। शोभा के घर उसकी भाभी जो आई थी। विदाई के समय शोभा ने सुनीता को एक ऊंचे दाम की बनारसी साड़ी भेंट की ताकि मैके में उसका मान बना रहे। जब सुनीता घर आई तो पड़ोसिनें उसकी साड़ी की खूब तारीफ करतीं, परन्तु वह साड़ी में कोई न कोई खोट निकालकर कहती -‘अच्छी क्या रहेगी? इससे कहीं अधिक कीमती साड़ियाँ तो घर में पहले से यूँ पड़ी हुई हैं।’ कुछ दिनों बाद ही सुनीता को अपने मैके से उसकी भाभी का फोन आया। यह कि काम की व्यस्तता के कारण भैया- भतीजे को फुर्सत नहीं है सो भतीजा रमेश के विवाह में वह जरुर आ जाए। जहां शोभा का पति उसे अपने वाहन पर बिठा कर लिवा लाए थे। यहां सिर्फ फोन पर बुलावा था। फिर भी उसके मन में मैके जाने की बेहद खुशी थी। माँ के देहांत के बाद सुनीता को मैके से इसी तरह किसी कार्य-प्रयोजन में पूछा जाता। जब लौटने लगी तो भैया -भाभी अपनी मजबूरी बता साधारण-सी साड़ी देकर उसे विदा किया। इस बार पड़ोसिनें जब मैके के बारे में पूछीं तो वह यह कहती सुनी गई-‘ अरे, भैया और भाभी तो एक से बढ़कर एक कीमती साड़ियांँ दे रहे थे, परन्तु अब इन साड़ियों में पहले जैसी कसावट- बुनावट नहीं मिलतीं। सो मैंने साधारण ही लेना पसंद किया। यह हल्की के साथ साथ आराम दायक भी होती है।’ इस बार सुनीता की थोथी दलीलें सुन पड़ोसिनें कुछ कहे बिना ऐंठकर वहां से खिसक गई थीं।
संजीव प्रियदर्शी फिलिप उच्च मा० विद्यालय बरियारपुर, मुंगेर