सबक- संजीव प्रियदर्शी

Sanjiv

एक लघुकथा

बारात अभी जनवासे पर पहुँची थी कि घर के लोगों को जैसे सांप सूंघ गया। माता-पिता को कुछ सूझ नहीं रहा था कि अब क्या किया जाए।धन तो जायेगा ही,धरम भी नहीं बचेगा। कुछ ही देर में घुनसुन होने लगी। सोनिया गाँव के अनपढ़-लफंगा सुरेश के साथ भाग गई।छोटा लड़का अमर माँ-बाप को कोसते हुए बोला-‘ सब आप लोगों की बेपरवाहियों का नतीजा है।अब हम बिरादरी-समाज में क्या मुँह दिखायेंगे?’ बड़ा लड़का रमेश कुछ सोचकर बोला-‘ अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है।बस बात अपने तक ही रहे।हम सोनिया की जगह सोनी का विवाह करा देते हैं। जुड़वां है, किसी को भनक तक नहीं लगेगी।’ जबतक सोनिया और सुरेश के पास घर से उड़ाये जेवर-रुपये थे, शहर-शहर भटकते रहे। कुछ माह बाद जब खाने के लाले पड़ने लगे तब पहले तो सुरेश ने दिहाड़ी की, फिर खर्च पूर्ति नहीं हो पाने पर सोनिया को भी एक फैक्टरी में साफ-सफाई का काम करना पड़ गया। एक दिन सोनिया दीन हालत में सफाई कर रही थी तभी सोनी और उसका पति मनोज कार में अपनी फैक्ट्री का निरीक्षण करने आए। हालांकि सोनी अपनी बहन को पहचान गई। परन्तु उसने घृणा से मुंह फेर लिया।

चार महीने बाद सोनिया सुरेश के साथ गांव लौटी थी। सुरेश के घर जब उसे तकलीफें सहन नहीं होने लगीं तो एक दिन अपनी माँ शोभा को फोन कर बिलखती हुई बोली-‘ माँ, अनजाने में मुझसे जो भी अपराध हुआ है, नादानी जान मुझे माफ कर दो। मैं सुरेश के संग अब और नहीं रह सकती। एक तो कुछ करता नहीं, ऊपर से शराब पीकर मारता-गरियाता है। मेरा तो जीवन नरक बन गया है।’ सोनिया की बात सुन शोभा गुस्से में भड़क कर बोली-‘ अरे कुलटा, तुम मुझे किस मुंह से माँ कह रही है? तूँ मर जाए तब भी हम तुम्हारा मुंह देखने नहीं जायेंगे।याद कर, तुम्हीं ने थाने में कहा था कि मैं इन्हें पहचानती तक नहीं। ये माँ-बाप नहीं, मेरे दुश्मन हैं। घर ले जाकर मुझे मारना चाहते हैं।सब याद है मुझे। इश्क करने का अर्थ यह नहीं कि अपनी जिंदगी दांव पर लगा दो।’ बोलकर उसने फोन काट दिया।

संजीव प्रियदर्शी

(मौलिक) फिलिप उच्च मा० विद्यालय बरियारपुर, मुंगेर

मो- 8789182068

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