समझ- संजीव प्रियदर्शी

Sanjiv

लघुकथा

पत्नी ने आकर कहा-‘ अजी सुनते हो! मनोरमा को जिस पूज्य बाबा जी की अनुकंपा से लड़का हुआ है,चलो न चलकर उनका आशीर्वाद ले लें।सुना है, वे पहुंचे हुए पुरुष हैं।’ मैं तंत्र-मंत्र अथवा आडम्बर में विश्वास नहीं रखता हूँ। परन्तु बच्चे की ख्वाहिश में पत्नी की जिद को टाल नहीं सका। हालांकि शंका निवारण के लिए पूछ भी लिया-‘ सुनने में आया है, मनोरमा किसी डॉक्टर से इलाज भी करवा रही थी। कहीं यह बच्चा उसी का प्रतिफल तो नहीं?’ पत्नी अविश्वास के लहजे में चमक कर बोली-‘ तुझे तो धरम-करम पर जरा भी विश्वास होता। अरे, दवाईयां तो वह वर्षों से लेती थी, परन्तु बच्चा बाबा जी की कृपा से अभी जाकर हुआ है।’

मेरे विवाह के छः वर्ष बीत चुके हैं। स्वाभाविक है, एक स्त्री में माँ बनने की कितनी छटपटाहट होगी। फिर उसकी अपनी मर्यादा भी तो है। हमलोग सबेरे ही आश्रम पहुंच चुके थे। अब हमें बाबा जी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना था।जब मैं आसन के पास पहुंचा तो पत्नी आस-पास कहीं नहीं थी। मुझे लगा भीड़ में शायद पीछे छुट गई होगी। परन्तु बाहर आया तो वह मेरा ही इंतजार करती मिली। मैंने देखते ही पूछ लिया-‘ क्या तुमने बाबा जी का आशीर्वाद ले लिया?’ ‘नहीं’- पत्नी ने छोटा-सा जवाब दिया। ‘क्यों?’ मैंने आश्चर्य से पूछा। ‘ यह बाबा नहीं, एक ढोंगी है’- उसने बेबाकी से जरा रोष में बोल दिया। ‘ कैसे? पर तुमने तो कहा था ये पहुंचे हुए हैं।’- सच जानने के लिए मैंने पुनः प्रश्न फेंक दिया था। ‘ तुझे याद नहीं, पिछले माह बच्चे की उम्मीद लेकर जिस दिल्ली वाले डॉक्टर साहब से हमलोग परामर्श लेने गए थे, यह बाबा भी पत्नी सहित वहीं था।’ आज पहली बार पत्नी की समझ पर मुझे गर्व महसूस हो रहा था। संजीव प्रियदर्शी

(मौलिक)

फिलिप उच्च मा० विद्यालय

बरियारपुर, मुंगेर

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