बच्चा और कहानी
आज बच्चों को लोरी सुनाने, कहानी सुनाने की परंपरा लुप्त सी होती चली जा रही है। दादी- नानी द्वारा बचपन में कहानियाँ सुन- सुनकर हम भी बड़े हुए हैं। परंतु आज का बच्चा मोबाइल का स्क्रीन हाथ में थामकर बड़ा हो रहा है, कहानियाँ उससे काफी दूर हैं। माँ लोरिया भी नहीं सुनाती। राजा एवं रानी के किस्से भी नहीं होते। राम अथवा उस तरह के किसी आदर्श के किस्से भी अब बच्चों को सुनने को नहीं मिल पाता है। परन्तु इन कहानियों का बच्चों के मानसिक विकास के साथ ही चरित्र निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।
मनोविज्ञान के साथ ही कई शिक्षाविदों द्वारा भी कहानियों को सुनकर तथा पढ़कर बड़े होने वाले बच्चों के संदर्भ में उनके व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है। आज कहानियाँ बच्चों के किताबों में भी उस तरीके से नहीं डाली जा रही हैं जैसी की होनी चाहिए। कहानियाँ रुचिकर होती हैं, आगे की घटनाओं को जानने की जिज्ञासा, बच्चों के भाषा तथा विषय से रुचि उत्पन्न करता है, जिसके कारण बच्चे का मानसिक,व्यक्तिगत तथा भाषाई विकास अच्छी तरह से हो पाता है। अतः हमें बच्चों के लिए वैसा पाठ्यक्रम तैयार करना होगा जिसमें कहानियाँ अवश्य हों। सबसे पहले बच्चे को अपनी मातृभाषा में कहानियाँ पऱोसी जाए, तत्पश्चात उनके लिए जिन भाषाओं को पढ़ने की उपयोगिता दिखे उस भाषा के अच्छी तरह से विकास के लिए उस भाषा में कहानियाँ सुनने और पढ़ने को मिले। यानी पाठ्यक्रम में प्रारंभिक स्तर पर कहानियाँ अवश्य हो। साथ ही, शिक्षक कहानियों को सुनाने में रुचि ले। इसके साथ ही बच्चों को पाठ्यक्रम के अतिरिक्त भी कहानियाँ पढ़ने को मिले और बाद में छोटी-छोटी कहानियों को स्वयं गढ़ने की कला भी सिखाई जाए,उसमें रुचि उत्पन्न की जाए।
संभव हो तो बच्चों के लिए किसी विषय पर कहानी लिखने की प्रतियोगिता आयोजित की जा सकती है एवं अच्छे कहानी लिखने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया जा सकता है। परिणाम स्वतः दिख जाएगा। कहानियाँ गढ़ने की कला बच्चे को कल्पनाशीलता की कला भी सिखाता है। यह काल्पनिक दृष्टिकोण बाद में विज्ञान के खोज एवं गणित के सूत्र के आविष्कार के तरफ भी बच्चे को ले जा सकता है। यूँ कहें तो कहानियों का बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
अरविंद कुमार प्रधानाध्यापक
गौतम म. वि. न्यू डिलियाँ डेहरी रोहतास
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