बेबसी-रुचि सिन्हा

बेबसी

          जब भी चैत्र-वैसाख का महीना आता, बरबस ही मुझे स्मरण हो आती है कक्षा VIII की छात्रा प्रिया की। चार बहनों में सबसे छोटी प्रिया मेधावी छात्रा थी। पढ़ाई के अलावे उसे खेलकूद, नृत्य, कढ़ाई-बुनाई का भी शौक था। संगीत तो मानो सरस्वती का गले में वाश हो। उसकी कक्षा में अनुपस्थिति जल्द ही महसूस हो जाया करती थी। चुलबुली और थोड़ी नकचढ़ी सी। बात-बात पर रूठना आदत थी उसकी फिर क्या, लग जाती मैं उसे मनाने में। प्रत्येक दिन स्कूल आना और अगले बेंच पर बैठने की तत्परता वयाप्त थी उसमें।

याद है मुझे, जब वह दो -तीन दिन विद्यालय नही आई। मन ही मन ढूंढती थी उसे, फिर बच्चों से उसके न आने का कारण पूछा। ऐसा लगा बच्चे जानते तो हैं पर अनभिज्ञता दर्शा रहे थे। तब मैंने ही उससे संपर्क साधने की कोशिश की, कुछ तो कारण होगा उसके न आने का!

उस दिन मैं उसके घर गई। टूटी-फूटी सी झोंपड़ी पर एक बड़ा सा परिवार जान पड़ा। मैंने आवाज लगाई- प्रिया है क्या ? अंदर से आवाज आई, नहीं वह खेत  गई है। कुछ लोग नजर आये तो मैंने पूछा- आजकल प्रिया स्कूल क्यों नही आ रही ? लोगों को जबाब से कतराते देखा। मन थोड़ा क्रोधित हुआ कि ऐसी कड़ी धूप में आई पर काम न हो सका। फिर मैं स्कूल की ओर बढ़ गई। कुछ दूर जाने पर मैंने देखा, सर पर भारी सी टोकरी और पसीने से लथपथ कुछ साथी के साथ प्रिया आ रही थी। वह मुझसे बचने के असफल प्रयास कर रही थी। उसके करीब गई और पूछा-आजकल स्कूल क्यों नही आती हो? वह नजरें नीचे झुका खामोश रही। मैंने फिर वही सवाल दुहराया, दुबारा भी खामोशी ही रही पर इस बार नजरें कुछ बोलना चाह रही थी, उसकी आँखों मे आंसू थे। मैंने उसे सीने से लगाया, क्या बात है प्रिया? इस पर उसके साथियों ने बताया कि प्रिया आजकल गेहूं कटनी और दौनी के समय खेतों में वैसे गेहूं के दानों को चुनने जाती है जो कटनी और दौनी के बाद खेत मे गिरे रह जाते। इस पूरे महीने वह अलग-अलग खेतों से दानों को इकट्ठा करती है और फिर उसकी साफ-सफाई कर आटा का इंतजाम करती है।

बच्चों की बातें सुन जैसे कलेजा फटने को आया।समझ ही नही पा रही थी कि मैं उसके स्कूल न आने पर उसे डाँट लगाऊं या उसके विद्यालय न आने के कारण को जान उसकी बेबसी पर आंसू बहाऊँ!!!
ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं ……

रुचि सिन्हा
मुजफ्फरपुर

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