बेटी दिवस की सार्थकता
आज बेटी दिवस है। संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर यह दिवस मनाया जाता है। हर देश में अलग-अलग तिथियों में बेटी दिवस मनाने की परंपरा है।
हमें कहने में कोई गुरेज नहीं कि बेटी की दुहाई देने वाले इस पुरुष प्रधान और पुत्र प्रधान समाज में कई प्रकार के भेदभाव होते रहे हैं। लिंगानुपात की वास्तविकता और बेटी के जन्म होने पर दकियानुसी सोच आदि विकृत मानसिकता आज भी बनी हुई है और आज भी बेटियों की जगह बेटे को ही खास तरजीह दी जाती है। हालांकि बड़े शहरों में यह मामले कम हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में और उपनगरीय क्षेत्रों में निरक्षरता और पुरानी घिसी-पीटी परंपराओं के चलते आज भी बेटी को दोयम दर्जे का समझा जाता है। अभी भी कई देशों में स्त्री-पुरुष भेदभाव सहित आदि मामलों में कमी नहीं आई है। सामाजिक सोच ही ऐसी है कि कुछ लोग अपना परिवार बढ़ाने के लिए सिर्फ बेटे को ही प्रमुखता देते हैं। यह शिशु हत्या का सबसे बड़ा कारण भी रहा है। लोगों की मानसिकता इस हद तक गिर जाती है कि घर में बेटी होने पर वो मां को प्रताड़ित करने से बाज़ नहीं आते। और यदि मां लगातार बेटी जन्मती हैं तो मां के ऊपर अमानुषिक अत्याचार भी बढ़ते ही जाते हैं।
विश्व के देशों की संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ ने समाज में लड़के और लड़कियों के बीच की गहरी खाई को पाटने की पहल सर्वप्रथम की है। लड़कियों के महत्व को समझते हुए उन्हें सम्मान देने के लिए प्रथम बार 11 अक्टूबर 2012 का दिन संपूर्ण विश्व की बेटियों के नाम समर्पित किया। संयुक्त राष्ट्र की इस पहल का स्वागत विश्व भर में हुआ। इसके बाद से विश्व के देशों में बेटियों के लिए यह दिवस समर्पित किया गया है। पुत्री दिवस हर देश में अलग-अलग तिथियों में मनाया जाता है। हालांकि 2012 के बाद हर बर्ष सितंबर माह के चौथे रविवार को यह दिवस भारत सहित विश्व के कई देशों में मनाया जाता है।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी पुत्री दिवस का खास महत्व है। परिवार के सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने में एक बेटी अहम किरदार में अपना रोल अदा करती है। विश्व के विकसित देशों को छोड़कर विकासशील और पिछड़े देशों में सामाजिक स्तर पर महिलाओं को पुरूष से कमतर माना जाता रहा है उस समाज में बदलाव लाने के लिए इस दिवस की एक खास अहमियत है।
बेटियों को समर्पित यह दिन उनकी सिर्फ तारीफ करने और उनको यह बताने के लिए ही नहीं मनाया जाता है बल्कि वे कितनी खास है इसलिए भी मनाया जाता है। बेटा एक कुल को तारता है तो बेटियां दो कुलों को तारती हैं। एक अपने पति के घर और दूसरी अपने माता-पिता के घर को संवारती हैं। यह दिन बेटियों के लिए जागरूकता बढ़ाने, शिक्षा को बढ़ावा देने और समानता को प्रोत्साहित करने के लिए भी खास मायने रखता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है कि लड़कियों को भी लड़कों की तरह समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिए।
अपने देश भारत में भी लिंगानुपात में भेदभाव एक गंभीर समस्या है। लड़कों के वनिस्पत लड़कियों के साथ घर-परिवार और समाज में दोयम दर्जे की सोच रखी जाती है। कम उम्र में बाल-विवाह कराना आज भी बदस्तूर जारी है। शिक्षा और जीवन की मूलभूत सुविधाएं देश का संविधान और कानून भी इन्हें देता है लेकिन आज भी लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में शिक्षा, स्वास्थ्य के मामलों में भेदभाव हो रहे हैं। आज इन बेटियों को भी खुद संघर्ष कर आत्मनिर्भर होने के लिए दृढ़संकल्पित होना पड़ेगा।
ऐसी भी बात नहीं है कि बेटियों के लिए सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं जागरुक नहीं हैं बल्कि इस दिशा में विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं से जरुरी प्रयास भी किए जाते रहे हैं। बस जरुरत इस बात की है कि सामाजिक और पुरानी दकियानुसी विचारों को बदला जाए और स्त्री पुरुष भेदभाव को हर हाल में मिटाया व बदला जाए तभी बेटी दिवस की सार्थकता बनी रह पाएगी। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को भी सतत जारी रखा जाए।
आप सभी को बेटी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
सुरेश कुमार गौरव
पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक