डिबिया-सत्यम कुमार

डिबिया

          डिबिया का नाम सुनते ही सामने वो ग्राइप वाटर की शीशी के ढक्कन में कांटी से बनाये गए छेद में पुरानी धोती या सूती साड़ी को फाड़ कर बनाई गई बत्ती, नीला मटिया तेल याद आ जाता है। डिबिया गाँव का सर्वप्रिय और सर्वसुलभ प्रकाश प्रदाता। हर घर में पाया जाने वाला यंत्र। यंत्र ही कहना होगा इसे, आखिर अनेक प्रकार से जलाया जाता जो था। रोशनी कम चाहिए या तेल कम हो तब टेम छोटा कर दिया जाता। नाईट बल्व का काम भी कर देता था। ज्यादा रोशनी चाहिए तो टेम बड़ा कर दीजिए। हाँ ज्यादा हिल-डुल गया तो भभक भी जाता था। फिर तो उसे बुझाकर फिर से जलाना होता था। शीशी के अंदर उजला गैस भर जाने पर उसके ब्लास्ट हो जाने का डर भी समाया रहता जो था। पेठिया में डिबिया को रखने वाला काठ का स्टैंड भी मिलता था । यह स्टैंड चूल्हे के पास रखने के काम आता था ताकि कड़ाही और तवे पर रोशनी आ सके। लोग भी खुद से मिट्टी और संठी आदि को जोड़ कर स्टैंड बना लिया करते थे। बच्चे भी शाम के ट्यूशन में गुरुजी के पास पढ़ने के लिए अपना डिबिया लिए जाते थे। वहाँ बच्चों के बीच डिबिया में तेल के खत्म हो जाने पर तेल उधार भी लिए दिए जाते थे। जलते डिबिया से जलते डिबिया में तेल उड़ेलने का विज्ञान भी वो जानते थे। क्या मजाल की डिबिया बुझ जाए। कुछ साहसी बच्चे तो छुट्टी होने पर डिबिया लेकर दौड़ भी जाया करते थे। बुझ जाए तो साथी के डिबिया से डिबिया जोड़ जला लिया।

किसी की छोटी शीशी तो कोई दशमूलारिष्ट के बोतल में ही डिबिया बना लेता। कालांतर में बाजार में टिन की डिबिया आ गयी। पतली सी नली वाली। फिर उस नली के लायक़ बत्ती भी उसी दुकान में लटकने लगा। फिर उसमें और सुधार हुआ और बत्ती घटाने बढ़ाने की कुंडी भी लग गई। कम तेल लगता था उस हाइटेक डिबिया में, पर स्वनिर्मित शीशी वाले डिबिया की लोकप्रियता बनी रही।

बिजली के आ जाने के बाद बेचारा दुबक से गया और किसी प्रकार अपना अस्तित्व बनाये रखा। दीवाली पर लोग उसे शीशी और मिट्टी के चुकिया या कुल्हड़ के रूप में साल में एक बार हाल हाल तक याद करते रहे। परंतु आज हमने दीवाली पर चायनीज भूकभुकिया, रंगीन एल ई डी बल्व लटका कर उसका नामोनिशान ही मिटा दिया है। बैटरी वाले रिचार्जेबल बत्तियों ने डिबिया को भुला सा दिया है। हाय! वो मेरा प्यारा छोटा सा आयोडेक्स की शीशी वाला डिबिया!

सत्यम कुमार
मध्य विद्यालय पटियासा उर्दू
बोचहां मुजफ्फरपुर

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One thought on “डिबिया-सत्यम कुमार

  1. सचमुच में, आपने इस गध गुंजन डिबिया के माध्यम से बचपन के पल को याद दिला दिया। जिसे हमने आज के इस बिजली के चकाचौंध रोशनी में तो उसे भुला ही दिया था। बहुत बहुत धन्यवाद।

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