दिव्यांगता ईश्वरीय रुप-कुमारी निरुपमा

Nirupama

दिव्यांगता ईश्वरीय रुप

          दिव्यांग अर्थात दिव्य अंग जिसके पास हो। ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक विशिष्ट सृजन। इन विशेष प्रकार के बच्चों का पालन-पोषण देख-रेख, पढ़ाई में भी विशिष्टता होती है।

वैसे तो दिव्यांगता के  21 प्रकार माना गया है परन्तु कुछ मुख्य है जैसे- दृष्टिहीनता, श्रवणबाधिता, बौद्धिक विकलांगता और मानसिक विकलांगता आदि।

स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण और सुरक्षा बच्चों का अधिकार है। दिव्यांग बच्चों के प्रति समाज की यह मानसिकता होती है कि यह कुछ नहीं कर सकते हैं। यही कारण है कि उनके अन्दर की विशिष्ट क्षमता को हम पहचान नहीं पाते हैं। यहां तक कि अभिभावक भी नहीं जान पाते हैं। दिव्यांग बच्चों को सबसे पहले अभिभावक ही चिन्हित नहीं कर पाते हैं कि उनके बच्चों में किस प्रकार की दिव्यांगता है। दिव्यांग बच्चे कभी दया के पात्र बनना नहीं चाहते हैं। हमारे समाज के लोग उन्हें बेबस और लाचार समझ कर ऐसा व्यवहार करते हैं कि वह पहले ही अपना आत्मविश्वास खो देते हैं। अभिभावक यह भी नहीं जानते हैं कि कोई भी स्कूल इस प्रकार के बच्चों को शिक्षा देने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता है।
सुधा चंद्रन, स्टीफन हॉकिंग, हेलन केलर आदि कुछ ऐसे नाम हैं जो गहन दिव्यांगता के बावजूद इतिहास रचा। सरकार और संस्थाएं दिव्यांग बच्चों की पहचान करने के लिए मेडिकल मॉडल का इस्तेमाल करती है। अगर सामाजिक मॉडल में हम बच्चों के अभिभावकों से रोजमर्रा के आने वाले जीवन की बाधाओं के बारे में बात कर सकते हैं तब हम उनका ज्यादा केयर कर सकते हैं।
दिव्यांग बच्चों के लिए सबसे सुंदर योजना है- समावेशी शिक्षा

समावेशी शिक्षा, शिक्षा जगत की आधुनिक मांग है। इसके अंतर्गत दिव्यांग, मंद बुद्धि, मेधावी छात्र, अनुसूचित जाति एवं जनजाति को एक साथ बैठाकर शिक्षा दिलाने की व्यवस्था है। समावेशी शिक्षा से दिव्यांगो में मनोबल बढ़ता है। समावेशी शिक्षा के अंतर्गत विशिष्ट प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता है जो छात्रों के मध्य समन्वय स्थापित कर सके। समावेशी शिक्षा ऐसे छात्रों के आत्मबल बढ़ाने में बहुत सहायक है। वह अन्य छात्रों को देखकर भी अपने गुणों का विकास करते हैं।

व्यवहारिक अनुप्रयोग
किसी विद्यालय के कक्षा IV में एक मानसिक मंदता वाला छात्र नामांकन करवाता है। वह अन्य छात्रों से बुद्धि लब्धता में उम्र के हिसाब से काफी पीछे है। सर्वप्रथम वह वर्ग में बैठता नहीं है। अन्य छात्र भी उसके साथ खेल करने लगते हैं। शिक्षक को पहले समझ में नहीं आता है कि क्या करें। तब वह एक उपाय निकालते हैं। जब वह वर्ग में जाते हैं तब सभी बच्चों को मेडिटेशन करने कहते हैं। वह छात्र (अमन) भी सभी को देखकर एकाग्र होने की कोशिश करने लगता है। धीरे-धीरे वर्ग में बैठने लगता है। वह शिक्षक अमन (बदला हुआ नाम) उसके अभिभावक को बुलाकर समझाते हैं कि इसे अपना काम स्वंय करने दें। साथ ही अन्य बच्चों की तरह समान व्यवहार करें।
चुंकि अमन मानसिक मंदता का दिव्यांग है अतः जब सभी बच्चों में वर्ग IV के अनुसार बुद्धि लब्धता है तो अमन में एक छोटा बच्चा का बुद्धि लब्धता है। अब शिक्षक प्रत्येक दिन वर्ग के किसी एक छात्र को उसे गोद दे देते हैं जो अमन को बैठने, शिक्षक से पूछकर जाने आने, कुछ पेंटिंग बनवाना और वर्णमाला आदि के बारे में सिखाता है। इस तरह अमन वर्णमाला, अल्फाबेट, संख्या ज्ञान सीखते हुए अगली कक्षा में वर्गोन्न्ति प्राप्त करता है। इसी तरह वह अगली कक्षा में अपनी बुद्धि लब्धता के अनुसार पढ़ाई करता है।

दिव्यांग बच्चों में एक अलग पत्रकार की विशिष्टता होती है । वह काफी संवेदनशील होते हैं। शिक्षकों का यह दायित्व है कि वह ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस सृजन को सम्मान दें।

कुमारी निरुपमा

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