एकाग्रता की महत्ता-देव कांत मिश्र

Devkant

एकाग्रता की महत्ता 

          संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर पाल डायसन के निमंत्रण पर स्वामी विवेकानंद स्विट्जरलैंड से जर्मनी गए हुए थे। दोनों आपस में विचार विमर्श कर ही रहे थे तभी प्रोफेसर डायसन किसी कार्यवश बाहर चले गए। थोड़ी देर बाद जब वे वापस आए तो स्वामी जी को कविता की एक पुस्तक के पन्ने पलटते पाया। डायसन चुपचाप उनके पास बैठ गए। थोड़ी देर बाद जब विवेकानंद ने पुस्तक पढ़कर छोड़ी तो डायसन को पास बैठे देख बोले,” ‘ क्षमा कीजिएगा, मैं पुस्तक पढ़ने में लीन था अतः आप पर ध्यान नहीं गया। “डायसन के मन में इससे उपेक्षा का भाव जगा, वे बोले, “आपने इतनी जल्दी पुस्तक पढ़ ली?” “हांँ, विवेकानंद बोले और पुस्तक से पढ़ी कविताएंँ सुनाने लगे। तत्पश्चात् डायसन हैरानी से बोले, “कमाल है, आपने इतने कम समय में पुस्तक की पूरी कविताएंँ पढ़ लीं और कंठस्थ भी
कर लीं। कैसे किया आपने यह? “स्वामी विवेकानंद मुस्करा कर बोले, इसका कारण है एकाग्रता। सच में, अगर आप एकाग्रचित्त होकर जिस काम को करेंगे वह अच्छी तरह सम्पन्न होगा।” डायसन एकाग्रता की महत्ता जान स्वामी विवेकानंद से बहुत प्रभावित हुए। अतः हमें पठन-पाठन एकाग्रता पूर्वक करना चाहिए। एकाग्रचित्त होकर की गई पढ़ाई दीर्घकाल तक स्मरण में रहती है और परिणाम भी सकारात्मक होता है।

देव कांत मिश्र

मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुल्तानगंज, भागलपुर

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2 thoughts on “एकाग्रता की महत्ता-देव कांत मिश्र

  1. बहुत सुंदर सीख मिलती है आपकी इस लघु कथा से ।

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