दुलारी-विजय सिंह नीलकण्ठ

विजय सिंह “नीलकण्ठ”

दुलारी

          बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में धनिकलाल नामक एक बकरी पालक रहता था जो बकरियों का पालन पोषण कर अपना समय बिताता था। वह इतना दयालु था कि किसी भी बकरी को कसाई के हाथों नहीं बेचता। खेती बारी अपने से नहीं करते लेकिन बटाईदार जितना अनाज दे जाता था वही उनके लिए काफी होता था। एक दिन “मखनी” नाम की एक बकरी ने एक बच्ची को जन्म दिया जो देखने में काफी सुकोमल और सुंदर थी। धनिक लाल ने उसका नाम “दुलारी” रखा और उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करने लगा। प्रतिदिन स्नान कराकर कपड़े से पोंछता, अपनी हाथों से खिलाता और अपने साथ अपने पास सुलाता भी था। दुलारी भी केवल दूध पीने के लिए अपनी माँ के पास जाती और बाँकि समय धनिक लाल के आस-पास उछल कूद करती रहती।
         धनिकलाल हर दिन दोपहर के खाने के बाद अपनी बकरियों को चराने के लिए पास के जंगल में जाता और अंधेरा होने से पहले सब को लेकर वापस आ जाता। इधर दुलारी बड़ी होने लगी। कुछ महीने में ही उनकी लंबी-लंबी टांगे और सींग हो गए। छरहरा शरीर, गोल-गोल चमकती दो आँखें, दो लंबे कान, सुडौल मस्तक, चमकता ललाट किसी को भी अपनी और आकर्षित करने में सक्षम था। शरीर का सफेद रंग तो उसकी सुंदरता में और भी चार चाँद लगा देता था। एक दिन धनिक लाल को बकरी चराने के क्रम में आलस्य आने लगा और वह एक पेड़ के नीचे लेट गया और आँखें लग गई। जब आँख खुली तो दुलारी को इधर-उधर देखने लगा लेकिन वह कहीं नहीं दिखी जिससे वह काफी परेशान होने लगा लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद दुलारी को अपनी पीठ पर एक बंदर के बच्चे को लेकर आता देख उसकी जान में जान आई। पास आते ही दुलारी सिर झुका कर खड़ी हो कर यह अहसास दिलाने लगी कि उससे गलती हो गई क्षमा कर दें। धनिकलाल भी उसकी भाषा को समझ कर उसके गले में हाथ डालकर प्यार करने लगा तभी बंदर का बच्चा उछल कर धनिक लाल के कंधे पर बैठ गया और उसका बाल सहलाने लगा जिससे धनिक लाल घबरा गया और उठ खड़ा हो गया। तभी बंदर नीचे उतर कर उसके सामने खड़ा होकर अपने आगे के दोनों पैरों को उठाकर आत्मीयता का भाव प्रकट करने लगा। धनिकलाल को भी उसकी भावना समझने में देर नहीं लगी। उसे पास बुलाकर प्यार से सहलाने लगा। अब धनिक लाल को बेटी के साथ-साथ एक प्यारा सा बेटा भी मिल गया। शाम में बंदर भी दुलारी के साथ धनिकलाल के घर चला आया और रात भर उसके और दुलारी के साथ हीं समय बिताया। धनिक लाल ने उसका नाम “नटखट” रख दिया और प्रतिदिन “दुलारी” के साथ नटखट को भी नहलाता और अपने बनाए गए भोजन में से उसे और दुलारी दोनों को खिलाया करता और स्वयं भी खाता। तीनों बहुत प्रसन्न रहने लगे। सभी एक दूसरे की भावना समझने लगे। इस तरह कई महीने बीत गए। इधर नटखट भी बड़ा हो गया और दुलारी की तरह वह भी धनिक लाल से बहुत प्यार करने लगा। तीनों हमेशा साथ रहते। जंगल में भी सभी बकरियाँ घास चरने दूर चली जाती लेकिन दुलारी और नटखट धनिक लाल की आँखों के सामने ही उछल-कूद करते रहता। नटखट पास के पेड़ से कुछ पत्ते तोड़ लाता और दुलारी के साथ मिलकर खाता। धनिकलाल के लिए कुछ पके फल लाकर उनके पास रख देता और हाथ से इशारा कर उसे खाने के लिए मजबूर कर देता जिसे देखर धनिकलाल हँसने लगता।
       एक दिन धनिकलाल की बकरियाँ घास की खोज में दूर निकल गई और नटखट भी कुछ अन्य बंदरों को देखकर उसके साथ चला गया लेकिन जाते समय दुलारी को इशारों-इशारों में कुछ समझा गया था कि मैं तुरंत वापस आ जाऊँगा। तभी एक बकरी के जोर से मिमियाने की आवाज धनिकलाल को सुनाई दी। धनिकलाल आवाज की ओर दौड़ा लेकिन दुलारी नटखट को खोजने दौड़ी। धनिकलाल ने देखा कि एक बाघ मखनी के पीछे के दोनों पैरों को पकड़कर घसीटते हुए ले जा रहा है। तभी वह देखता है कि सैकड़ों बंदरों के साथ नटखट और दुलारी भी बाघ की ओर दौड़ते आ रहा है। सैकड़ों बंदरों को एक साथ अपनी ओर आता देख कर बाघ बहुत घबरा गया और मखनी को छोड़कर वहाँ से भाग गया जिससे उसकी जान बच गई। मखनी तुरंत उठी और भागकर धनिक लाल के पास आ गई। यह देखकर धनिकलाल दुलारी की चतुराई और बुद्धिमानी पर काफी गर्व करने लगा और नटखट तथा दुलारी दोनों को दोनों हाथों में समेटकर प्यार करने लगा और मन ही मन सोचने लगा कि जानवर भी हमसे कम बुद्धिमान नहीं होते। फिर ऊपर देखकर भगवान को धन्यवाद देते हुए सोचने लगा कि है ईश्वर आपने दुलारी और नटखट रूपी सहारा देकर मेरा जीवन धन्य कर दिया है।
विजय सिंह “नीलकण्ठ”
विजय सिंह नीलकण्ठ 
सदस्य टीओबी टीम 
Spread the love

One thought on “दुलारी-विजय सिंह नीलकण्ठ

  1. सर दुलारी बहुत अच्छी कहानी है । पढकर बहुत अच्छा लगा ।

Leave a Reply