गोरैया-कुमारी अनु साह

गोरैया

          मीना के घर के पास एक बगीचा था जिसमें आम के पेड पर गोरैया का घोंसला था। मीना विद्यालय से आने के बाद रोज बगीचे में जाती थी और गोरैया के साथ खेला करती थी। एक दिन उसने गोरैया के घोंसले मे अंडे देखे। कुछ दिनों के बाद अंडों मे से बच्चे बाहर आए। उन छोटे-छोटे बच्चों को देखकर मीना बहुत खुश होती और उनके लिए अनाज के दाने भी घर से ले जाती। जब मीना बगीचे में पहुँचती तो उस समय गोरैया का जोडा वहाँ पर नहीं होता क्योंकि वह बच्चों के लिए भोजन की तलाश में बाहर चले जाते थे। मीना उन बच्चों के साथ खूब खेलती थी। एक दिन जब मीना बगीचे में पहुँची तो देखा कि गौरैया का एक बच्चा जमीन पर गिरा हुआ था। उसे काफी चोट लग गई थी और खून भी बह रहा था। मीना उसे लेकर अपने घर आ गई और अपनी माँ की मदद से उसकी मरहम पट्टी की। कुछ ही देर के बाद वह ठीक हो गया तो मीना ने उसे खाने के लिए रोटी का टुकडा दिया। शाम हो गई थी तो मीना उसे लेकर बगीचे में पहुँच गई। वह जानती थी कि जब गोरैया वापस आएँगे और बच्चे को नहीं देेखेंगे तो परेशान हो जाएँगे। इसलिए वह चाहती थी कि बच्चे को जल्द से जल्द घोंसले मे पहुँचा दे। जब वह बगीचे में पहुँची तो देखा कि गोरैया का जोडा वापस आ चुका था और एक बच्चे को न पाकर काफी परेशान था। मीना ने जब बच्चे को घोंसले मे रखा तो गोरैया का जोडा काफी खुश हुआ और बच्चे को खूब प्यार किया। मीना ने देखा कि गोरैया की आँखों मे आँसू थे और वे अपने सर को बार-बार हिला रहे थे मानो कृतज्ञता प्रकट कर रहे हो। मीना समझ गई कि गोरैया उसे धन्यवाद दे रही है।

कहानी का उद्देश्य-

बच्चों के अंदर मूक जीवों के प्रति प्यार और दया की भावना का विकास करना।

कुमारी अनु साह
प्रा. वि. आदिवासी टोला भीमपुर 

छातापुर  सुपौल 

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3 thoughts on “गोरैया-कुमारी अनु साह

  1. पवन कुमार,, प्राथमिक शिक्षक,, जिला अंबाला,, हरियाणा says:

    बहुत ही सुंदर रचना के माध्यम से प्रेरणादायक विचार

  2. अमर नाथ साह, म0 वि0 बरियारपुर (उत्तर), अररिया (बिहार) says:

    बहुत खूब… बाल मन में मूक प्राणियों के प्रति संवेदनशीलता की भावना को बढ़ावा देती हुई एक उत्कृष्ट रचना….

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