हिंदी का संछिप्त इतिहास
हिंदी भाषा संस्कृत, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश से होती हुई विकसित हुई। हिंदी के प्रारंभिक रूप में हमें अपभ्रंश के अधिकांश शब्द व्याकरणिक रूप दिखाई देते हैं। आगे चलकर हिंदी की अनेक बोलियां और शैलियां विकसित हुई। मुस्लिम शासकों की भारत में आ जाने के बाद उसमें अरबी फारसी शब्द आ गए और उसकी एक सहेली उर्दू के नाम से विकसित हुई। दक्षिण भारत की भाषाओं के शब्दों में आ जाने से दक्षिणी हिंदी की अनेक बोलियां विकसित हुई। हिंदी भाषा के विकास का इतिहास 1000 वर्षों का है जिसका अध्ययन हमने 3 चरणों में किया है। आदिकाल, मध्य काल तथा आधुनिक काल के अंतर्गत किया है।
आदिकाल का समय 1000 ईस्वी से 1500 ई. तक काम आ जाता है और इसी अवधि में हिंदी के अनेक रूप जैसे डिंगल, पिंगल हिंदी भी विकसित हुई। मध्यकाल जिसका समय 1500ई. से 1800ई. तक माना जाता है वह समय है जब हिंदी की प्राकृतिक बोलियां विशेषकर ब्रज अवधि तथा खड़ी बोली विकसित होकर सामने आती है तथा खड़ी बोली गद्य के विकास का सूत्रपात हमें इसी युग में दिखाई देने लगता है। प्रमाणित साहित्य का इसी दृष्टि से बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
आधुनिक काल जिसका समय 19वीं सदी से आरंभ होता है वह समय है जब हमें हिंदी साहित्य में ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली का प्रयोग दिखाई देता है। गद्य की तमाम विधाएं यहां विकसित होती है। यही नहीं 1925 के आस-पास पहुंचकर हिंदी की कविता भी ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली में लिखी जाने लगी। हिंदी खड़ी बोली के विकास के आरंभिक चरण में चार महानुभावों लल्लू लाल, सदा सुख लाल, सदल मिश्र तथा इंशा अल्लाह खान का महत्वपूर्ण योगदान दिखाई देता है। फिर आगे चलकर हिंदी के दो मूर्धन्य साहित्यकारों भारतेंदु हरिश्चंद्र तथा महावीर प्रसाद द्विवेदी की अभूतपूर्व सेवाएं प्राप्त होती है जिससे खड़ी बोली एक व्यवस्थित मानक रूप ग्रहण करती है। यही वह समय है जब आगे चलकर 1947 में भारत आजाद होता है और हिंदी साहित्य में तरह-तरह के मोड़ दिखाई देते हैं। 1965 में हिंदी का हिंदी सीढ़ियों की अथक प्रयासों से राजभाषा का दर्जा प्राप्त होता है। आज हिंदी सारे देश में बोली और समझी जाने वाली भाषा है। वह अनेक रुकावटों के बाद भी विभिन्न प्रदेशों की भाषाओं को अपने साथ लेकर अंतर्राष्ट्रीयता की ओर अग्रसर हो रही है।
धर्मेन्द्र कुमार ठाकुर