जानवरों का न्यायालय-रीना कुमारी

जानवरों का न्यायालय

एक जंगल था। उसमें सभी जानवर प्रेम पूर्वक रहते थे। जंगल के बीच में जानवरों द्वारा एक न्यायालय खोला गया जिसका नाम जानवर न्यायालय रखा गया। बंदर को न्यायाधीश बनाया गया। एक दिन सभी जानवर जैसे बाघ, सिंह, लोमड़ी, सियार, भेड़िया, हिरण, बाज, खरगोश, ऊँट, घोड़ा और भी कई तरह के जानवर, न्यायालय सभा में उपस्थित हुए जिसमें एक आदमी जो कि लकड़हारा था, वह गुणहगार था, दोषी था के लिए न्याय करना था। लकड़हाडा कटघड़े में खड़ा थ। बंदर जज होने के कारण सबकी बातें ध्यान से सुन रहा था।
सर्वप्रथम जंगल का पेड़ अपनी शिकायत जज के सामने पेश की।
पेड़ बोला- हुजुर ! यह आदमी बिना सोचे-समझे मेरी टहनी को काट लेता है। मेरी पत्तियों को तोड लेता है। मेरी तरफ देखिए हुजुर, मैं कितना कमजोर हो गया हूूँ। पत्तियाँ टुटने से मैं खाना नहीं बना सकता जिससे मैं कमजोर हो गया हूूँ। अतः इसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाय। फिर बाज अपनी समस्या लेकर हाजिर हुआ। उसने कहा हुजुर! यह आदमी अपनी कुल्हारी से पेड़ की कोटर में अचानक वार करता है कि कोटर में मेरे अंडे, बच्चे सभी घर विहीन होकर तहस- नहस हो जाते हैं। इसे जितनी जल्द हो कड़ी से कड़ी सजा दी जाय। उसके बाद ऊँट भी अपनी शिकायते लेकर आया। उसने कहा- हुजुर! यह लकड़हारा ही नहीं सभी मानव दोषी और निर्दयी है। यह लकड़ी काटकर मेरे पीठ पर लादकर बेचने ले जाता है। मुझे कई प्रदेशों में जहाँ गाड़ी घोड़ा नहीं चलते हैं, जहाँ बालू ही बालू रहता है वहाँ मुझसे सामान ढुलवाया जाता है क्योंकि मुझे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है और लकड़ी पीठ पर लादा जाता है। मैं थक कर बूढ़ा हो गया हूँ। मुझे ये सभी पीटते है तथा खाना भी ठीक से नहीं देते। मैं इतना कमजोर हो गया हूँ  कि आप मेरी हड्डी तक गिन सकते हैं। अतः इसे सजा देना अनिवार्य है। फिर घोड़े ने भी अपनी समस्या सुनाई कि मेरी मी समस्या लगभग उँट के जैसी ही है हुजुर! इसे सजा दी जाय। मछली भी अपनी शिकायतें लेकर हाजिर हुई। वह बोली- हुजुर! ये लकड़ी काटकर शहर में बेचता है और लोग नाव बनाकर नदी, समुद्र में जाते है तथा जाल फेलाकर मुझे फंसाते है और पैसे के लिए मुझे बेचते हैं। पानी में रहना मुझे अच्छा लगता है। स्वतंत्र विचरण करती हूँ ।ये लोग मेरी स्वतंत्रता मुझसे छीन लेते है। अतः इसे सजा मिलनी ही चाहिए।

जज बंदर ने सबकी समस्या को सुनते हुवे लकड़हाड़े से भी अपनी बात रखने को कहा। लकड़हाड़ा बाला- मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ। मैंने गलती की है।अब मैं पेड़ की शाखा को नहीं काटूँगा और मैं वादा करता हूँ कि किसी निर्दोष जानवर को भी नहीं सताउँगा।

सबकी बातों को सुनकर न्यायाधीश बंदर ने अपना न्याय सुनाया। तुमने अपनी गलती मान ली है। तुम पर सभी ने दोषारोपन किया कि तुम सच में इन सभी के जिम्मेदार हो, तुम महा दोषी हो । तुम्हारी सजा यही है कि तुम इस जंगल के रक्षक बनोगे। तुम्हारी इजाजत के बगैर कोई भी जंगल में नहीं आएँगे। तुमने बिना इजाजत के जंगल आकर वृक्ष को काटकर जानवरों को सताया है इसके लिए तुम दोषी हो गए। अब तुम्हें यह प्रमाणित  करना होगा कि तुम दयालु और स्वार्थ विहिण हो। तुम्हारी सजा यही है कि तुम बहुत संख्या में पेड़ लगाओ और सगे सम्बन्धी दोस्तो में भी अधिक पेड़ लगाने का संदेश पहुँचाओ। तुम्हारी यही सजा है। ऐसा सुनकर वहाँँ उपस्थित सभी काफी खुश हुए और बंदर महाराज की जय का नारा लगाते हुए अपने-अपने काम में लग गए।

शिक्षा-
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हर समस्याओं का जड़ मनुष्य ही है। अपनी सुख सुविधाओं के लिए मनुष्य ईश्वर द्वारा रचित श्रृष्टि के विनाश पर लगा हुआ है। जीवों को सताना, वृक्षों की कटाई करना इत्यादि सब लालची और स्वार्थी मानव हीं करते हैं। जिसे विवेकशील होना चाहिए।

रीना कुमारी 

प्राथमिक विद्यालय सिमलवाड़ी पीश्चम टोला
बायसी, पूर्णिया
Spread the love

23 thoughts on “जानवरों का न्यायालय-रीना कुमारी

  1. शिक्षाप्रद कहानी।

  2. इस कहानी से हमें पेर और जानवर कितना महत्वूर्ण है इस की सीख मिलती है
    रीना दी आप की पहली रचना काफी अच्छी है

  3. बहुत ही प्रेरणादाय एवं अनुकरणणीय रचना

  4. प्रकाश प्रभात,बाँसबाड़ी,बायसी,पूर्णियाँ says:

    बहुत ही सुन्दर,प्रेरणादायक आलेख!👍👍🌹👌🏻👌🏻

  5. शिक्षाप्रद और प्ररेणा दायक कहानी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
    जेम्स मनोहर बारला
    मध्य विधालय डंगराहा घाट बायसी पुर्णिया बिहार

  6. बहुत सुंदर, शिक्षाप्रद, प्रेरणादायक | कहानी के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का सकारात्मक संदेश 🙏🙏

Leave a Reply