परीक्षा का सच- सुरेश कुमार गौरव

गाँव के छोटे से स्कूल में पढ़ने वाला सूरज पढ़ाई में औसत था। परीक्षा का नाम सुनते ही उसके माथे पर पसीना छलकने लगता। इस बार भी वार्षिक परीक्षा सर पर थी, और वह घबराया हुआ था। सूरज की माँ ने देखा कि बेटा उदास है। उन्होंने प्यार से पूछा, “क्या हुआ बेटा?”

सूरज ने सिर झुका लिया, “माँ, मुझे डर लग रहा है कि मैं परीक्षा में फेल हो जाऊँगा।”

माँ मुस्कुराईं और उसे आंगन में लगे आम के पेड़ के पास ले गईं। उन्होंने एक छोटे से आम के फल की ओर इशारा किया, “बेटा, ये आम अभी खट्टा है, लेकिन अगर इसे समय और धूप मिलेगी, तो यह मीठा और स्वादिष्ट हो जाएगा।”

सूरज ने ध्यान से सुना, तो माँ ने आगे कहा, “ठीक वैसे ही, परीक्षा भी हमें पकने और निखरने का मौका देती है। असली परीक्षा तो जीवन की है, जिसमें मेहनत और आत्मविश्वास ही सफलता दिलाते हैं।”

सूरज को बात समझ आ गई। उसने मन लगाकर पढ़ाई की, और परीक्षा में अच्छे अंक लाकर दिखाया। अब उसे परीक्षा से डर नहीं लगता था, बल्कि वह उसे सीखने का अवसर मानने लगा।

शिक्षा: परीक्षा केवल अंकों का खेल नहीं, बल्कि सीखने और निखरने का अवसर होती है।


सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक

उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना, (बिहार)

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply