सनातन की शपथ-विजय सिंह नीलकण्ठ

सनातन की शपथ

          यहाँ उपस्थित ग्रामवासियों को साक्षी मानकर मैं शपथ लेता हूँ कि आज ही नहीं अभी से किसी भी सजीव की हत्या नहीं करूँगा। विशेषकर साँप की कभी हत्या नहीं करूँगा और न तो किसी को अपने सामने करने दूँगा।
हुआ यह था कि सनातन नाम के एक किशोर के पिता की मृत्यु सर्प के काटने से हो गई थी जिससे सनातन ने संकल्प लिया था कि मैं अपने और अपने आस-पास के गाँव के सभी सर्पों की हत्या कर दूँगा। उसने अपने जीवन का लक्ष ही सिर्फ सर्प विनाश रख लिया था। हर दिन सुबह एक डंडा लेकर निकल जाता और सर्पों को ढूँढ-ढूँढ कर मारता जाता। स्वयं के गाँव और पास-पड़ोस के गाँव के लोग उसे बहुत समझाते लेकिन वह मानने के लिए तैयार नहीं होता। साँपों की कमी होते जाने के कारण किसान परेशान रहते थे क्योंकि खेतों में लगी फसलों को चूहे बर्बाद कर देते। हर जगह मेढक हीं मेढक दिखाई पड़ता। घर से बाहर हर ओर मेढक नजर आते। चूहे भी खेतों की फसलों के साथ-साथ घरों के सामानों को भी कुतर देते। सभी काफी परेशान थे। उस इलाके में जो भी सर्प थे वह या तो सनातन के हाथों मारे गए थे या अपनी जान बचाने के लिए जंगलों में चले गए थे।

दिन-रात मेहनत करके किसान फसल उगाते और तैयार होने से पहले आधे से अधिक फसलों को चूहे बर्बाद कर देते। मेंढक भी हमेशा टर्र-टर्र की आवाज करके लोगों को परेशान किए हुए था। मेढक के डर से बच्चे घर से बाहर नहीं निकलते। यदि कोई बच्चा बाहर निकल भी जाता तो कई मेढक उसके ऊपर उछल-कूद करने लगता जिससे बच्चों का खेलना-कूदना बंद हो चुका था। महिलाएँ और पुरुष भी कम परेशान नहीं थे। इधर सनातन अपनी कारस्तानी से बाज नहीं आ रहा था। लगभग सभी सर्प खत्म हो चुके थे फिर भी सनातन अपनी दिनचर्या का अंग सांपों को खोज कर मारना ही बना चुका था।
जब सनातन बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने पास के गाँव में ही उसकी शादी कर दी। वैसे सभी सनातन से दुःखी रहते थे फिर भी बार-बार मिन्नतें करने पर एक आदमी ने अपनी पुत्री का विवाह सनातन से कर दिया। अब पत्नी के मना करने पर भी सनातन सांपों को खोज कर मारने का काम नहीं छोड़ रहा था। शादी के दूसरे वर्ष सनातन को एक पुत्र हुआ जिसे देखकर सभी खुश थे। अब सनातन अपने पुत्र की देखभाल करने में थोड़ा समय बिताता और दोपहर में साँपों को खोजने चला जाता। चुँकि बहुत सारे सर्प मारे जा चुके थे जिस कारण अब सनातप को खाली हाथ लौटना पड़ता लेकिन चूहे और मेढकों से वह भी परेशान रहने लगा। घर के चूहे छोटे बच्चों को काट लेते घर के सामानों का सफाया कर देते।

एक दिन सनातन शाम के समय घर आया तो देखा कि उसके घर के बाहर भीड़ खड़ी है। वह तुरंत अपने घर के आँगन में गया तो देखा कि उसका छोटा बेटा एक खाट पर खेल रहा है और वहीं पास में एक शर्प बैठा है। तभी उसकी नजर खाट के नीचे उछल- कूद करते कई चूहे नजर आए। उसकी माता और पत्नी भी उसी के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। सनातन ने उत्सुकता पूर्वक पूछा कि यह सब क्या है? तब उसकी माँ ने बताया कि यदि आज यह सर्प नहीं होता तो तुम्हारे बेटे को ये सारे चूहे नोच-नोच कर खा जाते। इसी सर्प देवता ने तुम्हारे बेटे को चूहों से बचाया है। इसी सर्प देवता के डर के कारण सभी चूहे खाट के नीचे छुपे हुए हैं। ऐसा देखकर सनातन अपने दोनों घुटनों के बल बैठ गया और सर्प से माफ़ी माँगने लगा और शपथ लेकर साँपों को नहीं मारने की बात सबके सामने की। अब वह जंगल जाकर वहाँ से साँपों को पकड़ कर लाता और गाँव के बाहर छोड़ देता। इस तरह साँपों के डर से चूहे और मेढकों का उत्पात खत्म हो गया और सभी खुशी पूर्वक रहने लगे।

विजय सिंह “नीलकण्ठ”

विजय सिंह नीलकण्ठ
सदस्य टीओबी टीम

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7 thoughts on “सनातन की शपथ-विजय सिंह नीलकण्ठ

  1. A great messagable article. Thanx a lot.👌👌

  2. बहुत ही उम्दा किस्म का संबाद। बहुत ही ज्ञानवर्द्धक और अनुकरणीय आलेख। पर्यावरण संरक्षण और जीवमंडल में आहार श्रृंखला के महत्त्व पर अति उन्नत विश्लेषण।

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