सदव्यवहार- विमल कुमार विनोद

vinod kumar Vimal

किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसका व्यवहार बहुत कीमती चीज माना जाता है।व्यवहार किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक बेशकीमती गहना माना जाता है,जिसके बिना लोगों का जीवन एक पतवार विहीन नाव के जैसा होता है।मनुष्य को अपने जीवन में हर पल सुन्दर व्यवहार करना चाहिये।
माता-पिता तथा घर परिवार के लोग बचपन से ही अपने बच्चों को अपने परिवार के लोगों तथा अपने से बड़े बुजुर्गों के साथ चलने-फिरने उठने-बैठने,बातचीत
करने इत्यादि बातों को सीखाते है।इसी कारण ही परिवार को सामाजिक जीवन का सर्वोत्तम पाठशाला कहा जाता है।बच्चा जन्म लेने के बाद ज्यों-ज्यों बड़ा होता जाता है,त्यों-त्यों उसके अंदर सोच-समझ की शक्ति बढ़ती जाती है।
व्यवहार जीवन का एक सर्वोत्तम
गहना माना जाता है,क्योंकि कहा जाता है कि जीवन में आपका व्यवहार ही आपका परिचय है।
उदाहरण स्वरूप आप एक पदाधिकारी हैं और आपके नीचे के कर्मचारी आपसे किसी कार्य के लिये जाते हैं,उस समय जब आपके अधीनस्थ कर्मी जो
आपसेअपनी समस्या के समाधान हेतु विनम्र भाव से मिलने जाते हैं,तो आपको भी भी अपने नीचे के कर्मी की समस्या पर विचार- विमर्श करना चाहिये ताकि उसकी समस्या का समाधान हो सके,
लेकिन यदि उसके साथ आपके व्यवहार का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो फिर हम जैसे
निचले स्तर के कर्मी का क्या होगा?
उसी प्रकार हमलोग पेशे से शिक्षक हैं,हमलोगों को जीवन जीने में एक सभ्य,सुसंस्कृत तथा
सादा जीवन उच्च व्यवहार को अपनाना चाहिये,क्योंकि आप एक राष्ट्र निर्माता हैं,विश्व के
तमाम नौनिहाल बच्चों के भविष्य का निर्माण हम शिक्षकों के कंधों
पर है। इन सभी चीजों से अलग हटकर देखने की कोशिश करने
पर जैसे आप गाँव,घर,समाज में भी देखेंगे कि किसी भी व्यक्ति से आप जब मिलते हैं और वह आपसे ढ़ंग से मिलते हैं तो वह आपसे बहुत प्रभावित होता है तथा आपके आचार-विचार से प्रभावित होकर दूसरों को भी बहुत अच्छी तरह से प्रभावित करने का प्रयास करता है।
विद्यालय जहाँ पर लोगों को बोलने,सीखने,चलने-बैठने,बड़े-
बुजुर्गों से मिलने की कला को सीखाया जाता है,जो कि जीवन के लिये बहुत आवश्यक होता है
तथा कि उसके भविष्य निर्माण की बात करता है,जीवन के लिये बहुत आवश्यक है।आज के समय में जबकि भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व आधुनिकता के दौड़ से गुजर रहे हैं कहीं पर व्यवहारिकता में कमी देखने को मिलती है,जिसकी भरपाई कर पाना एक मुश्किल कार्य नजर आता है।इसके कारणों का अवलोकन करने पर पता चलेगा कि इन सभी चीजों के पीछे जो मूल बात है,उसमें कहीं-न-कहीं जन्म के बाद से उनको बताये गये आचार-विचार तथा परिवार की उनके व्यवहारों के प्रति अनदेखी
रही होगी।
अंत में मेरा मानना है कि हमलोग आने वाली पीढ़ी को बचाने का प्रयास करें तथा उनमें सुन्दर व्यवहार,नैतिकता,लोकाचार,
सामाजिकता,उठने-बैठने की कला,बड़े-बुजुर्गों के साथ आपसी व्यवहार को विकसित करने के तौर-तरीकों को विकसित करने का प्रयास किया जाय ताकि उनका आने वाला कल उज्जवल हो सके, इनके सुन्दर भविष्य की कल्पना के साथ ही आपका,
आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद” शिक्षाविद,भलसुंधिया,गोड्डा (झारखंड)।

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