आत्मनिर्भरता-अर्चना गुप्ता

आत्मनिर्भरता

           आत्मनिर्भर का अर्थ ही है अपनी जरूरतों के लिए खुद पर निर्भर रहना औरों पर नहीं। यदि कोई व्यक्ति आत्मनिर्भर हो तो वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने में पूर्णतया सक्षम होता है । अगर बैसाखी की आदत हो जाए तो आदमी हाथ-पैर होते हुए भी अपाहिज हो जाता है। इसलिए मनुष्य को हमेशा स्वावलंबी रहना चाहिए और बहुत हद तक इन्होंने पैरों पर खड़े होना सीख लिया है । आत्मनिर्भरता ही सबसे बड़ा कारण है जो मनुष्य को पशुओं से अलग करता है।
आत्मनिर्भरता सिर्फ मनुष्य के लिए ही नहीं देश के लिए भी अति आवश्यक है तभी वह स्वदेशी उत्पादों के महत्व को समझ पाएँगे और विश्व स्तर पर अपने आपको आत्मनिर्भर देशों की कतार में खड़े कर पाएँगे। स्वतंत्रता के बाद कई दशकों तक अपना देश खाद्यान्न के लिए भी दूसरे देशों पर निर्भर था जिस कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था पर आज भारत की स्थिति पूर्व की अपेक्षा बहुत ही अच्छी है। आज आवश्यकता है कि हम अधिक से अधिक स्वदेशी उत्पादों का महत्व दें।
आत्मनिर्भरता सिर्फ और सिर्फ आत्मबल और आत्मविश्वास के बूते पाई जा सकती है। आज पूरा विश्व वैश्विक महामारी से जूझ रहा है। आज हर जगह बताया जा रहा है कि चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करो पर यह तभी संभव हो पाएगा जब हमलोग स्वदेशी उत्पादों को दिल से अपना पाएँगे। स्वदेशी उत्पादों के प्रति रूचि बढ़ाने के लिए इन उत्पादों की कीमतें घटानी होगी ताकि लोगों को खरीदने में ज्यादा अर्थबोझ न हो। पर यह तभी संभव हो पाएगा जब देश में आपूर्ति पर्याप्त हो। इसके लिए लघु-कुटीर एवं मध्यम उद्योगों को फिर से अच्छी स्थिति में सुचारु रूप से तैयार करना होगा साथ ही विद्युत आपूर्ति में भी सुधार करना होगा जिससे किसी फैक्ट्रियों के कार्य में कोई बाधा न हो। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करना होगा। अपना देश पूरी तरह से तभी आत्मनिर्भर बन पाएगा जब स्वदेशी उत्पाद देश के कोने-कोने तक पहुँचेगे।
हम सभी देशवासियों का परम कर्तव्य है कि अपने उत्पादों के प्रति जागरूक रहे और एक दूसरे को प्रोत्साहित करते रहें। हम दुनियाँ के किसी भी देश से कम नहीं है। हमारे पास संसाधन हैं, सामर्थ्य है, बेहतरीन टैलेंट भी है। आत्मनिर्भर होने के लिए हमें अपनी क्षमता को खुद से पहचानना होगा। आत्मनिर्भर होने से हमारे देश की निर्यात क्षमता में वृद्धि होगी और हमारे देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी साथ ही विश्व के अन्य देशों से व्यापार के माध्यम से मित्रता प्रगाढ़ होगी। आत्मनिर्भर बनने से दुनियाँ के नक्शे पर अपने देश की पहचान भी विकसित राष्ट्रों में की जाएगी और अपने देश में निवेश भी अधिक होगा जिससे बेरोजगारी दर में भी कमी होगी ।

पर कुछ समस्याएँ आत्मनिर्भरता की राह में अभी भी सुरसा की भाँति मुँह बाए खड़ी है, जैसे कि अशिक्षा, मजदूर वर्ग की अति दयनीय स्थिति आदि। हमें शिक्षा की स्थिति में अपेक्षित सुधार करने की आवश्यकता है जिससे तकनीकी रूप से हम मजबूत और आत्मनिर्भर बन सकें साथ ही, मजदूर वर्ग की स्थिति को बेहतर से बेहतर बनाने की जरूरत है। इसके लिए उनके प्रशिक्षण का विशेष ध्यान देना होगा क्योंकि यह वर्ग हमारे उद्योगों की रीढ़ हैं। अगर हम सचमुच आत्मनिर्भर होने के बारे मे सोच रहे हैं तो हमें कई दशकों से चले आ रहे उपेक्षित, शोषित मजदूर वर्ग पर ध्यान देना होगा तभी हमारी अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत होगी।

अर्चना गुप्ता
म . वि . कुआड़ी
अररिया बिहार

Spread the love

One thought on “आत्मनिर्भरता-अर्चना गुप्ता

  1. बहुत ही अच्छा आऔर प्रेरणादायक आलेख।

Leave a Reply