बहन की दुआ-मनु कुमारी

बहन की दुआ

          रक्षाबंधन का दिन था। अन्य बहनों की तरह रिमझिम भी इस त्योहार को लेकर काफी उत्साहित थी! रिमझिम के परिवार में केवल रिमझिम और उसकी माँ हीं थी । उसके पिता की मृत्यु कुछ वर्ष पहले हीं हो गई थी! उसकी माँ दूसरे के घरों में जाकर काम करती थी ताकि अपने परिवार का भरणपोषण कर सके! दो दिन पहले हीं वह रक्षाबंधन में पहनने हेतु कपड़े सिलवाई, राखी खरीदी, घर की सफाई की, आज सुबह से हीं पडोस में नये, पुराने मनभावन रक्षाबंधन गीत बज रहे थे! मोहन ने उसे फोन करके बता दिया था कि वह रक्षाबंधन के दिन जरूर आएगा , अपनी बहन से राखी बंधवाने! बस क्या था रिमझिम खुशी से उछल पडीं कि आज उसके जीवन का सबसे खास, व अनमोल दिन होगा जब वह अपने भाई को राखी बांधेगी! तभी उसके मोबाइल पर फोन आया! हेलो! क्या आप रिमझिम हैं? मैं संजीवनी हाॅस्पीटल से बोल रहा हूँ! मोहन जी का एक्सीडेंट हो गया है! आप तुरंत आईये!

जी, “मैं अभी तुरंत आती हूँ ” कहकर रिमझिम फूट फूट कर रोने लगी! माँ भी रोने लगी कितनी खुश थी रिमझिम राखी का थाली सजाकर मोहन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी! फिर माँ ने ढाढस बंधाते हुए कहा कि “चुप हो जा बिटिया ” मोहन को कुछ नहीं होगा! हाँ माँ मेरे भैया को कुछ नहीं हो सकता! जल्दी जल्दी दोनों माँ बेटी हाॅस्पीटल पहुंची! क्या आप रिमझिम हैं? डाॅक्टर ने कहा
जी हाँ, कैसे हैं मेरे भईया ?डाॅक्टर साहब! “रिमझिम ने कहा ”
उनके सिर में अन्दरुनी चोंटे आई हैं! खून काफी बह चुका है! हालत सीरियस है, तुरंत आॅपरेशन करना पडेगा! आप इस डाक्यूमेंट्स पर हस्ताक्षर कर दीजिए!

“वह हस्ताक्षर करके बोली “मेरा भाई ठीक तो हो जाएगा ना डाॅक्टर?

मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा बांकी ईश्वर की मर्जी! “अभी कुछ नहीं कह सकते”
कहकर डाॅक्टर ओटी में चले गए!
इधर रोते रोते रिमझिम की आँखें फूल सी गयीं! वह माँ की गोद में सिर रखकर अतीत की याद में खो गयी! उस समय रिमझिम छोटी थी और गांव के हीं सरकारी विद्यालय में आठवीं कक्षा में पढती थी! उसकी माँ का सपना था कि उसकी बेटी पढे लिखे और अपने पैरों पर खडी हो! उसकी माँ किसी तरह दूसरों के घर में काम करके दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लेती थी! माँ ने रिमझिम का दाखिला गाँव के हीं सरकारी विद्यालय में करवा दी थी! क्योंकि यहाँ पर नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है! रिमझिम पढने में बहुत अच्छी थी! वह रोज समय पर विद्यालय जाया करती थी! उसके आचरण से शिक्षक भी प्रसन्न रहते थे!वह कभी भी विद्यालय नहीं छोडती थी! उसका विद्यालय बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में पडता था! जुलाई अगस्त महीने में सैलाब के कारण रिमझिम को नाव पर चढ़कर विद्यालय जाना पड़ता था ! एक दिन इसी प्रकार विद्यालय से वापस घर आने के क्रम में वह नाव पार कर रही थी, नाव बीच नदी में उलट गयी क्योंकि नाव जो पहले चलाता था वह आज नहीं चला रहा था उसका बारह साल का बेटा जो अभी अभी सीखा था वही नाव चला रहा था! नदी में नाव पलटने पर हाहाकार मच गया जो सबको अपनी जान बचाने ,समान सुरक्षित रखने की पड़ी थी !जो तैरना जानते थे तैर कर जान बचाने की कोशिश कर रहे थे! रिमझिम तैरना नहीं जानती थी, वह पानी की धार में बहे जा रही थी बचाओ! बचाओ! चिल्ला रही थी कोई उधर ध्यान नही दे रहा था! वह कुण्ड के तरफ जहाँ तीन बांस पानी था उसी में पहुंच गयी सिर्फ हाथ उसका दिख रहा था जो किसी की मदद मांगने हेतु हिल रहा था! तभी एक युवक जो अठारह या उन्नीस वर्ष का होगा वह अपनी जान की परवाह किये बिना पानी में कूद गया और उसे बचाने की कोशिश करने लगा! बार बार वह उसे किनारे पर लाने की कोशिश करता परंतु पानी के तीव्र वेग के कारण वह डूबी जा रही थी! लेकिन वह युवक हार नहीं माना, कई बार कोशिश करने के बाद वह उसे बचा लिया, रिमझिम को सूखी जमीन पर रखा, उसकी बस सांसे चल रही थी! वह होश में नहीं थी, काफी पानी पी चुकी थी ! नदी किनारे काफी भीड़ थी, वह युवक स्थानीय महिलाओं की मदद से रिमझिम के शरीर से पानी निकाला! उसे होश में लाया! अब रिमझिम खतरे से बाहर थी ! सभी ने कहा तुम्हारा जान बचाने वाला फरिस्ता कोई और नहीं बल्कि ये है, रिमझिम ने कहा भैया तुम्हारा नाम क्या है?

“मोहन मेरा नाम है ” युवक ने कहा!

वह रो पडीं, कहा मेरा कोई भाई नहीं! लेकिन तुम्हें देखकर लगता है कि अगर मेरा भाई होता तो बिल्कुल वह तुम्हारे जैसा होता! तुमने अपनी जान की परवाह किये बिना मेरी जान बचाई है, मैं इस उपकार का ऋण कभी नहीं चुका सकती! ये जिंदगी तुम्हारी देन हैं ! ये तो मेरा फर्ज था ” मोहन ने कहा!
“क्या मैं आपको कह सकती हूँ?
क्यों नहीं? मोहन ने कहा
“रिमझिम ने कहा” धन्यवाद भैया!
बस क्या था वह सबके सामने नदी का जल लेकर और थोड़ी सी मिट्टी लेकर उसे तिलक लगाई और उसे भाई मान लिया और वादा की मैं इस पवित्र रिश्ते को जीवनभर निभाऊंगी! मोहन ने कहा मैं भी वादा करता हूँ कि मैं भी भाई बहन के इस पवित्र रिश्ते को निभाउंगा ! वास्तव में मेरी कोई बहन नहीं! मोहन उसे सकुशल घर पहुचा दिया! रिमझिम ने सारी बातें अपनी माँ को बताई! उसे यकीन नहीं हो रहा था! फिर वह चला गया! वह कभी कभी आता रिमझिम के घर, उसको शिक्षा के महत्व को समझाता, वह समझाता कि कितना जरूरी है महिलाओं को अपने अधिकार के बारे में जानना, पढना लिखना, अपने पैरों पर खडी होना, लडके लडकी में कोई फर्क नहीं! वह उसे हिम्मत देता, वह उसे कहता कि जब एक बेटी शिक्षित होती है तो पूरा परिवार व समाज शिक्षित होता है! रिमझिम और उसकी माँ बहुत खुश थी! धीरे धीरे मोहन ने उसे तैरना भी सिखा दिया! अब रिमझिम को एक ऐसा भाई मिला जो खून का ना होकर भी अपना था! दिन से महीने, महीने से वर्ष कैसे बीत गये कुछ पता नहीं चला! इधर रिमझिम स्नातक की पढाई पूरी की! फिर उसे अच्छी नौकरी भी मिल गई! रिमझिम अपने आफिस में सबको अपने भईया से मिलवाना चाहती थी! क्योंकि आज वह जो कुछ भी थी ! माँ ने उसके माथे पर हाथ फेरा वह उसकी तन्द्रा भंग हुई! माँ ने कहा “बिटिया! भगवान से प्रार्थना करो!बहन की प्रीति और भक्ति में बहुत शक्ति होती है, तुम्हारी प्रार्थना भगवान जरूर सुनेंगे! वह बोली तुम ठीक कहती हो माँ! अगर मेरे भाई के प्रति मेरी प्रीति, सेवा भाव, विश्वास, सच्चा है और ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति है तो आज मेरे भाई जरूर ठीक होंगे! इतना कहकर वह मंदिर गयी और वहाँ भगवान पर राखी चढाकर वह मन हीं मन प्रार्थना करने लगी कि हे भगवान!यह राखी मेरे भाई को सभी संकटों से बचाए! मेरी उम्र उसे लग जाए!वह हाॅस्पीटल आकर नर्स से बोली! “सिस्टर ! कैसी है मेरे भाई की तबीयत? “अभी कुछ नहीं कह सकते” धैर्य रखिये! डाॅक्टर ने आकर कहा बधाई हो रिमझिम! आॅपरेशन सफल रहा! लेकिन मरीज को कबतक होश आएगा ठिकाना नहीं! एक दो तीन घंटे के बाद या चौबीस घंटे भी लग सकते हैं! वह बोली! “क्या मैं अपने भाई को राखी बांध सकती हूँ? क्यों नहीं? ” डाॅक्टर ने कहा “!
रिमझिम अंदर जाकर भाई को राखी बाँधती है, और प्यार से उसके माथे पर हाथ फेरती है! इतने में वह देखती है कि मोहन का हाथ पैर हिल रहा है! वह डाॅक्टर से कहती है! डाॅक्टर ने कहा” मोहन को होश आ गया’ यह तो चमत्कार हो गया! सचमुच बहन की दुआ ने ये जादू कर दिया! रिमझिम भाई से लिपटकर रो पडीं! उसके आंखों में खुशी के आंसू थे! माँ भी यह दृश्य देखकर रो पडीं! तभी मोहन ने कहा “रिमझिम मैं तुम्हारे लिए तोहफा लाया हूँ लोगी नहीं” हां भैया जरूर लूंगी! अब तुम पहले जल्दी ठीक हो जाओ! मोहन ने कहा बड़ी किस्मत से मुझे तुम जैसी बहन मिली! हम इस रिश्ते को ताउम्र निभायेंगें! फिर रिमझिम ने डाॅक्टर का आभार जाताया! डाॅक्टर ने कहा आप इन्हें तीन दिनों के बाद घर ले जा सकते हैं! रिमझिम खुशी से फूली नहीं समाई!

मनु कुमारी
प्रखण्ड शिक्षिका
मध्य विद्यालय सुरी गाँव 
बायसी पूर्णियाँ

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6 thoughts on “बहन की दुआ-मनु कुमारी

    1. बहुत अच्छी रचना मनु जी, बहुत बहुत बधाई!

  1. Bahut hi sanvedanshil rachna….aur umda lekhan aapki vidvata ka parichayak hai…aap bahut aage barhe……yahi meri dua hai Manu🌹🌹🌹🌹👌👍👍🌹🌹🌹🌹🌹🌹

    1. आप सभी का बहुत बहुत आभार उत्साहवर्धन के लिए! 🙏🙏

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