गौरी को जब पहली बार आसमान में उड़ते हवाई जहाज़ को देखने का मौका मिला, वह बस चुपचाप उसे देखती रही। उसकी माँ ने पूछा – “क्या सोच रही है गौरी?”
गौरी ने जवाब दिया – “माँ, मैं एक दिन इस जहाज़ को उड़ाऊँगी।”
सुमित्रा मुस्कुराई, लेकिन दिल में डर बैठ गया । यह सपना इस कस्बे के लिए बहुत बड़ा था।
गौरी हमेशा पढ़ाई में अव्वल रही। विज्ञान, गणित, और अंग्रेज़ी उसकी ताक़त थे। लेकिन कक्षा 10 के बाद पिता श्रीराम ने एक दिन दो ट्यूशन की फीस एक साथ चुकाते हुए कहा – “गौरी को अब घर के काम में हाथ बँटाना चाहिए, ये लड़कों वाले सपने न दिखाए।”
गौरी रोई नहीं, लेकिन रात-रात भर किताबों से लड़ती रही। उसकी माँ चुपचाप उसका साथ देती, उसे सुबह-सुबह पढ़ने उठाती और पिता से छिपाकर ट्यूशन का खर्च देती।
फिर एक दिन गौरी को एक छात्रवृत्ति मिली – राज्य सरकार की “उड़ान योजना” के तहत। लेकिन फार्म भरने के लिए उसे पिता के दस्तावेज़ की ज़रूरत थी। वह काँपते हुए पिता के पास गई और बोली – “पापा, मुझे इस फॉर्म पर सिर्फ़ आपके हस्ताक्षर चाहिए। मैं आपसे पैसे नहीं माँगती, बस विश्वास माँगती हूँ।”
श्रीराम कुछ देर चुप रहे, फिर बोले – “तू पायलट बनना चाहती है ना? तो उड़। लेकिन एक बात याद रख – पीछे मुड़कर मत देखना, ये गाँव तेरी उड़ान की ज़ंजीर न बने।”
गौरी का दाख़िला दिल्ली के एक विशेष प्रशिक्षण केंद्र में हुआ। वह पहली बार ट्रेन से दिल्ली गई – अकेले। माँ ने उसे विदा करते हुए कहा–“नीला आसमान तेरा है बिटिया, आज तेरा पंख नहीं, मेरी आत्मा उड़ रही है।”
5 वर्ष बाद…गाँव के स्कूल में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का बड़ा कार्यक्रम था। मंच पर एक महिला पायलट आई – वर्दी में, तेज़ चाल, आत्मविश्वास से भरी।
लोग चौंके… वह गौरी थी।
आज गौरी न सिर्फ़ खुद पायलट है, बल्कि उसने गाँव की पाँच और लड़कियों को निःशुल्क तैयारी केंद्र खोलकर आगे बढ़ाया है।
कार्यक्रम में गौरी ने कहा –“एक पिता का हस्ताक्षर, एक माँ की हिम्मत, और एक समाज का जागरूक होना – बस इतना ही चाहिए एक बेटी की उड़ान के लिए।”
समाज संदेश: “बेटियाँ बोझ नहीं, अवसर हैं।
जब हम उन्हें उड़ने देते हैं, तब समाज को नई ऊँचाइयाँ मिलती हैं।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ – यही है उज्ज्वल भारत की राह।”
–सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक
उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)