कृष्णा का आग्रह
रविवार का दिन था “कृष्णा” के घर वाले घर की सफाई में लगे हुए थे और उसका छोटा भाई बाजार से कुछ फल और मिठाई लेने गया था क्योंकि आज फिर कोई नया मेहमान कृष्णा को देखने आने वाले थे। कृष्णा मैट्रिक प्रथम दर्जे से उत्तीर्ण थी परंतु परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वे लोग उसके आगे की पढ़ाई करवाने में असमर्थ थे।वहीं कृष्णा पढाई मैं काफी अच्छी थी। वो चाहती थी कि वह खूब पढ़े और प्रोफेसर बनें पर केवल चाहने से क्या होता है? नहीं चाहते हुए भी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उसे आगे की पढाई छोड़नी पड़ी। पढाई छोड़े दो वर्ष हो गए थे इसलिए उसके माता-पिता उसकी शादी करवा देना चाहते थे।कृष्णा का रंग काला था इसलिए शायद उसका नाम “कृष्णा” रखा गया था। कृष्णा का केवल रंग ही काला नहीं बल्कि उसके साथ उसका रूप भी साधारण था। कुल मिलाकर कृष्णा के पास केवल प्रखर बुद्धि के अलावे कुछ विशेष गुण नहीं थे जैसा आज का समाज चाहता है।अब सभी जानते ही हैं कि समाज में गरीब परिवार की लड़की से कोई व्याह करना नहीं चाहता है क्योंकि वहाँ उसे दहेज की गुंजाईस नहीं रहती है। एक तो साधारण दूसरी गरीबी, दोनों ही उसके जीवन को श्रापित ही बना दिया था। बार-बार नए मेहमान के सामने जाना और फिर उनके द्वारा उसे नापसंद कर देना इससे कृष्णा का मन बेहद आहत होता था। अब तो समाज वाले भी बोलने लगे थे कि “ई लड़की कैसन किस्मत लेकर आई है कि कोई पसंद भी नहीं करता है, और “उमर भी बढ़ता जा रहा है इससे छोटकी सब ससुराल बस गई है”। इसके माँ-बाप को कुछो पैसा रहता तो शायद इसका व्याह हो जाता। यही सब बोल कर समाज उसे ताना मारने लगा था। यह बात कृष्णा हमेशा समाज में सुनती रहती थी इसलिए आज वो मेहमान के सामने जाने के लिए तैयार नहीं हो रही थी। बार-बार रिजेक्ट होने से उसे बुरा लग रहा था। वो माँ से बोलती अब उनलोगों के सामने नहीं जाऊँगी। मैं कोई सामान नहीं हूँ, मेरे दिल पर भी चोट पहुँचती है। इस बार कृष्णा सोच रही थी की क्यों न अपनी किसी सहेली के घर जाकर बैठ जाऊँ जिससे उनके सामने जाना ही न पड़े क्योंकि ये तो अमीर घर के लोग है ये तो और भी जल्दी रिजेक्ट कर देंगे। इसपर माँ बोली- कृष्णा ऐसा करने से परिवार की बेइज्जती होगी और लोग गलत सोचेंगे? यह सुनकर कृष्णा सोच में पड़ गई और बोली- ठीक है माँ! मैं जाऊँगी उनके सामने।
करीब दो बजे मेहमानों का आगमन हुआ। वो लोग उसके टूटे-फूटे घरों को देखकर घबरा गए और सोचे अपने बेटे का व्याह ऐसे घर मैं? नहीं ..नहीं..और वो सोचने लगे “ना”तो करना ही है, अच्छा लड़की देख लेता हूँ कहीं दहेज मिल जाए तो सब ठीक है। अब कुछ देर बाद कृष्णा को सजा-धजा कर लाया गया। जैसे ही उनलोगों की नजर कृष्णा पर पड़ी सब की भौहें टेढी हो गई और तुरंत टाल-मटोल कर अत्यधिक दहेज की मांग करके उसे रिजेक्ट कर दिया और कृष्णा को अंदर ले जाने को कहा फिर वो लोग भी जाने लगे। यह देख कर कृष्णा का हृदय रो दिया।इसबार भी मैं रिजेक्ट हो गई। आज उससे रहा नहीं गया वो अंदर जाने के बजाय लड़के की माँ के पैर पकड़ ली और रोते हुुए बोली-“माँ ! मुझे मत रिजेक्ट कीजिये मैं गरीब घर से हूँ, देखने मैं अच्छी नहीं हूँ न ही तो मेरे पिता दहेज देने लायक है पर उनलोगों ने मुझे अच्छे संस्कार दियें है। मैं आपको एक बेटी का प्यार दूँगी। आपके घर को अच्छे से संभालूँगी। मैं थक गई हूँ रिजेक्ट होते-होते। यह देखकर लड़के की माँ चकित हो गई और वो बच्ची के आग्रह को रोक नहीं पाई।अचानक उसे कृष्णा पर ममता आ गई और वो कृष्णा को गले लगाते हुए बोली- तुमने मेरी आँखें खोल दी। अब तुम्हीं मेरे घर की बहू बनोगी। उसके बाद वो बगैर किसी खर्च के कृष्णा को व्याह कर ले गई। घर के कामों से जो समय बचता उसे कृष्णा पढ़ने में लगाती। पढाई में रुचि देखकर वे लोग उसे उच्च शिक्षा दिलाए।अपनी मेहनत से आज कृष्णा इंग्लिश की प्रोफेसर है।
आँचल शरण प्रा. वि. टप्पूटोला बायसी पूर्णिया बिहार
👌👌
बहुत ही भावनात्मक और मार्मिक रचना आँचल जी! Keep it up!👌👌
बहुत ही उत्कृष्ट रचना हैं आपकी।
आपकी रचना बहुत ही उत्कृष्ट
आपकी रचना बहुत ही उत्कृष्ट हैं।
पठनीय आलेख,बहुत सुन्दर!
Nice
बहुत ही उत्कृष्ट रचना आपकी आंचल जी
Very nice storie
Very nice story
बहुत ही अच्छी रचना!! लगा, जैसे सामने घटित सत्य घटना हो . ऐसी ही और लघु कथा के इंतजार में –
तुम्हारे
अंकल जी
ढेरों शुभकामनाओं के साथ..
Very nice story
Good message
बहुत सुंदर रचना मैम👌👌👌👌
बहुत ही भावनात्मक एवं सुंदर रचना आँचल… आप निरंतर प्रयास करते रहें आप बहुत आगे जाएंगी,👍