प्रेरणा-विजय सिंह नीलकण्ठ

प्रेरणा

         

          दीदी-दीदी पानी ला दूँ? दीदी ब्रश ला दूँ क्या? दीदी माँ को बता दूँ कि दीदी उठ गई है पीने के लिए दूध गर्म कर हॉरलिक्स मिला दे इत्यादि? ये सारी बातें “पारुल और प्रणीत” जो “प्रेरणा” के छोटे भाई-बहन थे उसके जगते ही पूछने लगते। ऐसा इसलिए कि प्रेरणा भी अपने दोनों भाई-बहनों को असीम प्यार देती और हमेशा ध्यान रखती थी। तीनों भाई-बहन के आपसी प्रेम से पास पड़ोष हीं नहीं पूरे गाँव के लोग परिचित थे। हिटलर बेटी आज क्या योजना है? प्रेरणा के उठते ही उसके पिताजी ने पूछा। इसका हँसकर जवाब देते हुए प्रेरणा ने कहा कुछ नहीं पापा, आप तो मुझे हमेशा चिढ़ाते रहते हो, माँ को बोल दूँ क्या? नहीं-नहीं बेटा, बेकार का चिल्लाने लगेगी, उसे कीचन में ही रहने दे।क्या तुम माँ से कम हो क्या? तुमको तो मैंने “हिटलर दीदी” की संज्ञा दे ही रखी है।

         हुआ ये था कि जब प्रेरणा बारह वर्ष की हुई तो उसके पिता ने पास के ही गाँव के एक मैट्रिक पास लड़के से उसका विवाह तय कर दिया। शुरू में प्रेरणा को यह बात समझ में नहीं आई थी, जब लड़के की माँ और पिताजी उसे देखने आए थे। बाद में पड़ोष की “सरिता” नाम की एक बच्ची ने उसे पूछा कि तुम्हारी शादी कब होने वाली है? लड़के के माता-पिता ने तुम्हें पसंद किया कि नहीं? इतना सुनते ही प्रेरणा उस लड़की से तो कुछ नहीं बोली लेकिन सीधे घर आकर अपनी माँ से पूछने लगी- कल कौन आए थे? किसलिए आए थे? मुझे जानना है। माँ प्रेरणा के स्वभाव से परिचित थी इसलिए उसने पिताजी से पूछने का बहाना बनाकर छुटकारा ले ली लेकिन प्रेरणा के चेहरे के हाव-भाव को देखकर समझ गई कि शायद इसे शादी के बारे में पता चल चुका है। दोपहर के समय खाना खाने के लिए पिताजी का खेत से घर आते ही प्रेरणा सीधे उनके पास गई और बोलने लगी- पिताजी आप बचपन में ही मेरा विवाह क्यों करवाना चाहते हैं? आपको पता नहीं कि मेरी उम्र अभी पढ़ने और खेलने-कूदने की है? क्या मैं अठारह वर्ष की हो गई हूँ? क्या मैं आपके लिए बोझ बन गई हूँ? क्या आपको पता है कि बाल विवाह करवाना अपराध है? क्या बुआ जी के बहकावे में या मां के कहने पर आप मेरा विवाह कराना चाहते हैं? क्या आप चाहते हैं कि आपकी पुत्री खेलने-कूदने के समय में माँ बनकर अपनी जिम्मेदारी निभाने लगे? क्या आपको बाल विवाह का दुष्परिणाम पता है? क्या आपने स्वयं से पहले अपनी पुत्री को बूढ़ी होता देखना पसंद करने का मन बना लिया है? नहीं पापा ऐसा नहीं होगा। मैं जब तक बड़ी नहीं हो जाऊँगी, जब तक अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाऊँगी, विवाह तो दूर उसके बारे में कल्पना भी नहीं करूँगी। आप मेरे संकल्प से परिचित हो गए होंगे। सुन रहे हैं पापा?  पिता के मुख से कुछ नहीं निकल रहा था वह तो इस बात से अति प्रसन्न थे कि जो बातें वह स्वयं नहीं जानता था उसकी जानकारी प्रेरणा को थी। बार-बार पूछने पर बोला नहीं ऐसी कोई बात नहीं है बिटिया! मैं तो बस दूसरे के बहकावे में आकर अपनी हिटलर बेटी के हाथ पीले करने पर राजी हो गया था। अब मुझे पता चला कि बाल विवाह से क्या हानि होती है। मुझे माफ कर दो बिटिया। इतना सुनते ही प्रेरणा बोली- पापा मैंने आप पर गुस्सा किया इसके लिए मुझे क्षमा कर दीजिए लेकिन आप ऐसी बात फिर कभी नहीं सोचियेगा। न बाबा न ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा, पिता ने कहा। इस घटना के बाद से “प्रेरणा” काफी खुश और उत्साहित हुई। अपने गाँव हीं नहीं, पास-पड़ोष के गाँव में भी जब कभी किसी के शादी विवाह की बातों का पता चलता तो वह अपने दोनों सिपाहियों (पारुल और प्रणीत) के साथ वहाँ पहुँच जाती और यदि बाल- विवाह या दहेज लेने-देने की बात का पता चलता तो ऐसा हंगामा खड़ा कर देती कि विवश होकर विवाह करने की बात लोगों को छोड़नी पड़ती और दहेज नहीं लेने-देने का संकल्प लेना पड़ता।
           ऐसे कार्यों से प्रेरणा की हिम्मत बढ़ती गई। अब वह गाँव के हर घर से लड़कियों को निकालकर  मैदान ले जाती। कभी कराटे तो कभी कुश्ती, कभी कबड्डी तो कभी वॉलीबॉल, कभी फुटबॉल तो कभी क्रिकेट खेलने के लिए उत्साहित करती। मात्र चार से पाँच वर्षों में प्रेरणा के इलाके से हर गाँव की बच्चियों का चयन राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए होने लगा। प्रेरणा भी कराटे सिखाने का प्रशिक्षण केंद्र खोलकर हर दिन सुबह-शाम बच्चियों को कराटे का प्रशिक्षण देने लगी और लगभग पचीस वर्ष की उम्र में विवाह कर गृहस्थ जीवन बिताने लगी लेकिन सामाजिक कार्यों को जीते जी करती रही और अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई तथा “हिटलर दीदी” के नाम से भी विख्यात हुई।
विजय सिंह नीलकण्ठ 
सदस्य टीओबी टीम
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2 thoughts on “प्रेरणा-विजय सिंह नीलकण्ठ

  1. बहुत सुंदर लेखनी आपने बहुत ही मार्मिक ढंग से शब्दों को सुसज्जित किया है आदरणीय आपको बधाई 👌👌👌👌

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