रोटी की बर्बादी-रीना कुमारी

रोटी की बर्बादी

          अगर पूछा जाए कि जीवन में सुबह से शाम तक हमलोग किसके लिए मेहनत करते हैं, तो अधिकतर लोगों का जवाब भिन्न हो सकता है। किसी को भविष्य की चिंता होती है, तो कोई अपने बच्चों के लिए, सुख-सुविधा के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं, लेकिन इन सब जवाबों के बीच जो सार्वभौमिक सत्य है वह है दो जून की रोटी। जी हाँ! दो जून की रोटी के लिए ही हम सब सुबह से शाम तक मेहनत करते हैं। बेशक रोटी, कपड़ा और मकान हम मानवों की बुनियादी जरूरते हैं, लेकिन यहाँ भी रोटी को सबसे पहले रखा गया है। लब्बोलुआब यही है कि दो जून की रोटी के बाद ही अन्य चीजों की हमारे जीवन में आवश्यकता होती है।

अब इन सबके बीच जो दुखद पहलू है वह है अनाज की बर्बादी। एक अनुमान के मुताबिक देश में हर साल उतने अनाज बर्बाद हो जाते हैं जितने में देश की आधी आबादी साल भर बैठकर भोजन कर सकती है। इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी कि देश में जहाँ करोड़ों की आबादी को दो जून की रोटी नसीब नहीं होती व हमारी मनमानी से बर्बाद हो जाती है। शादी-विवाह या अन्य अवसरों में थाली में परोसा गया व्यंजन भले ही हमारी शान का द्योतक हो लेकिन प्लेटों में छोड़े गए जूठन अनाज बर्बादी की दास्तां ही बयां करता है। यहाँ तक कि हम अपने घर में भी अनाज बर्बादी के प्रति आंखें मूंदे होते हैं। कितनी शर्मनाक बात है कि एक तरफ हम अनाज की बर्बादी को अपनी शान समझते हैं, वहीं कचरों के ढेर में कुछ बच्चे भोजन तलाशते हैं। आज भी देश की एक बड़ी आबादी, खेतों में फसल कटने के बाद गिरे-पड़े अनाजों को चुनकर अपना पेट भरने का इंतजाम करती है।

आईये, अनाज की बर्बादी न करने का हम सब प्रण लें। अन्न है तो जीवन है। अन्न ग्रहण करके ही हम जीवन जीने के लिए उत्साहित होते हैं। अतः रोटी के महत्व को हम समझें और यदि ज्यादा रोटी या अन्न बच जाए तो उसे गरीब, भूखे बच्चे, भिखारी या पशु-पक्षी को दे दें ताकि उनका भी पेट भर सके और हम सबको दुआएँ भी लगे। किसी ने सच ही कहा है–

“फेंकने को मुट्ठी में जो अनाज अट जाता है, उतने में ही किसी गरीब का पेट भर जाता है”।

रीना कुमारी (शिक्षिका)
प्राथमिक विद्यालय सिमलवाड़ी पश्चिम टोला

बायसी पुर्णिया

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5 thoughts on “रोटी की बर्बादी-रीना कुमारी

    1. लेखिका ने भोजन के महत्व को अच्छी तरह प्रदर्शित किया है।👌

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