सपना की सूज-बूझ-विजय सिंह नीलकण्ठ

सपना की सूझ-बूझ

          किसी गाँव में मनसुखलाल नाम का एक किसान रहता था। उसे दो संतान थे। एक का नाम था सपना और दूसरे का नाम सल्लू। सपना के जन्म के एक दिन पहले उसकी माँ ने स्वप्न में देखा कि उसकी संतान पुत्री हुई है इसलिए उसका नाम सपना ही रख दिया। धीरे-धीरे सपना छः साल की हुई तो गाँव के सरकारी विद्यालय में उसका नामांकन करवा दिया गया। अब सपना हर दिन विद्यालय जाती और मन लगाकर पढ़ाई करती।
          चुँकि गरीब किसान परिवार के हर सदस्य खेत में काम करके अपना जीवन-यापन करते हैं तो सपना भी बचपन से ही अपनी माँ के साथ खेत जाती। गाँव के बाहर खेत था जो सपना के घर से थोड़ा दूर था फिर भी सपना चार-पाँच वर्ष की उम्र से ही कभी-कभी अकेले भी अपना खेत चली जाती जहाँ पहले से पिताजी काम करते रहते थे। छः वर्ष के बाद तो वह अपने पिताजी को दोपहर का खाना भी पहुँचाने लगी।
          विद्यालय में नामांकन के बाद वह प्रतिदिन विद्यालय जाती और मन लगाकर पढ़ाई भी करती। विद्यालय से आने के बाद वह दो-चार रोटी लेकर खेत पर जाती और अपने दोनों बैलों को खिला देती। दोनों बैल भी सपना से बहुत प्यार करते थे। सपना को देखते ही खुशी से उछल कूद करने लगता। फिर शाम में दोनों बैलों को सपना हीं घर लाती।
          एक बार शाम के समय जब वह खेत से वापस आ रही थी कि रास्ते में घनघोर बारिश शुरु हो गई। चारों ओर अंधेरा छा गया। बादल गरजने लगे। ठनका ठनकने लगे। तभी मनसुखलाल दौड़कर पास के बबूल के पेड़ के नीचे चला गया। सपना थोड़ा पीछे थी लेकिन अपने पिता को पेड़ के नीचे जाते देख ली थी। वह बैल को तुरंत बैठ जाने को कहा और चिल्लाते हुए दौड़कर अपने पिता के पास गई और हाथ पकड़कर पेड़ के नीचे से खुले में ले गई। पिता के साथ दोनों कानों को दोनों हाथों से ढक कर सिर आगे की ओर झुकाकर उकड़ू  करके दोनों बैठ गए। तभी ठनके की आवाज और चमक का अनुभव हुआ। लेकिन उन दोनों पर कोई असर नहीं हुआ। लगभग दस मिनट बाद बारिश छूट गई और ठनके का गिरना भी बंद हो गया। फिर जब दोनों खड़े हुए तो देखा कि उसी बबूल के पेड़ पर ठनका गिर गया था जिससे पेड़ बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। मनसुखलाल सपना को अपनी गोद में उठाकर खुशी से नाचने लगा और सपना की सूझ-बूझ को देखकर यह जानने की कोशिश करने लगा कि सपना यह सब कैसे जानती है।
          पूछने पर सपना ने बताया कि किस तरह विद्यालय में मुख्यमंत्री सुरक्षित शनिवार के अंतर्गत बच्चों को ठनके से बचने का उपाय बताया गया था। उसने कहा कि पिताजी कल मुझे बताया गया था कि यदि कहीं रास्ते में ठनका ठनकने लगे तो पास के किसी मकान में चले जाना चाहिए और यदि ऐसा संभव न हो तो जहाँ हैं वहीं अपने दोनों कानों को अपने दोनों हाथों से ढक लें। आंख बंद कर लें फिर नीचे की ओर सिर झुका ले और उकड़ू करके बैठ जाएँ। हाँ इस बात का ध्यान रहे कि पास में पेड़ नहीं हो। बिजली का खंबा नहीं हो। मोबाइल का टावर इत्यादि नहीं हो। उससे हमेशा दूर रहना चाहिए। इस तरह बात करते हुए मनसुखलाल और सपना बैलों के साथ सुरक्षित घर पहुँच गए।

विजय सिंह नीलकण्ठ 

सदस्य टीओबी टीम 

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