स्वगुण
एक सप्ताह पहले की बात है, नाव से पार करते समय एक बुजुर्ग महिला और उसके साथ उसकी दो युवा पौत्री भी थी। वह सभी उस पार मार्केट जा रही थी। बुजुर्ग महिला के पास एक पालीथिन में चढ़ाएं हुए फूल थे। जब नाव तट से कुछ आगे बढ़ा तो वह अपने पालीथिन के फूल को नदी में गिरा दिया और पालीथिन को धोकर रख ली। पौत्री ने पूछा कि अब तुम यह पालीथिन लेकर मार्केट जाओगी।
उसकी दादी ने कहा- “नहीं, मैं तट पर पहुंच कर किसी पेड़ में टांग दूंगी। लौटते समय लेते जाऊंगी।”
पौत्री- फूल पालीथिन सहित फेंक देती। अब इतना करने की क्या जरूरत है।
दादी- तुमको नहीं पता है बेटी, कुछ समय पहले तक हम सभी अपना सारा काम नदी के पानी से ही करते थे। खाना बनाना, पानी पीना, कपड़े साफ करना जैसे सारे काम इसी पानी से करते थे।
हमारे अन्दर स्वगुण है कि इसे साफ रखना है। तुम्हारे अन्दर किताब पढ़कर इसे साफ रखने का भाव कहां से पैदा होगा।
पौत्री- दादी की भावपूर्ण बात सुनकर वह चुप हो गई।
कुमारी निरुपमा