रामू,श्याम,मोहन,रघू,शशि,सोहन नामक बेरोजगार दोस्त जीवन में बेरोजगारी की मार से जूझते हुये तबाही के चरम शिखर पर पहुँच गये हैं।अब ये दोस्त मिलकर कोई अच्छा सा धंधा करना चाहते हैं।इन लोगों ने सोचा कि हम सभी दोस्त मिलकर आयुर्वेदिक दवा का ही रोजगार क्यों न करें।यही सोचकर सभी पाँच दोस्त वन विभाग में वृक्ष लगाने के लिये पहुँच कर वन विभाग के साहेब से मिले।वन विभाग के द्वारा उन लोगों को नीम,आंवला,अर्जुन, अशोक,पीपल,बरगद,जामुन का पौधा सरकारी खर्च पर दिया गया।उसके बाद धीरे-धीरे वह पाँच दोस्त आयुर्वेदिक दवा बनाने का कारोबार प्रारंभ कर देते हैं।दूर दूर से कठिन एवं असाध्य रोगों के इलाज के लिए रोगी आने लगे हैं।
एक रोगी-वैद्य जी,हमको तो सुगर हो गया है,दिन-रात हम बिमारी से परेशान रहते हैं।हमको तो डर लगता है कि कहीं हम मर न जायें।यह सोच कर हम बहुत परेशान रहते हैं। वैद्य जी-चिंता मत कीजिये सेठ जी,मैं हूँ ना।(दवा देते हुये)यह लीजिये जामुन से बना हुआ दवा, इसको खाने के बाद आप स्वस्थ हो जायेंगे।साथ में यह एक जामुन का पौधा भी लेते जाइये काहे कि फिर आपलोग सुगर का इलाज अपने ही कर लीजियेगा और दोबारा मेरे पास आना नहीं पड़ेगा।
सेठ जी-दवा कितना दाम हुआ।
वैध जी-मात्र पाँच सौ रूपया। इसके बाद हृदय रोग,दाँत संबंधी बिमारी,पेट,किडनी,टूट भांग, वात रोग,गैसटिक आदि अनेकों प्रकार की बिमारी से संबंधित रोग के रोगी आने लगे तथा वैद्य जी के द्वारा उनको दवा के साथ-साथ एक-एक पौधा देकर लोगों को अपना-अपना घर भेज दिया गया।
(अब ये पाँच दोस्त जो कि वैद्य हो चुके हैं जो कि अलग-अलग तरह की बीमारी की दवा लेकर,एक दिन समय लेकर वन विभाग के साहेब से मिलने जाते हैं।उसके बाद साहेब उन लोगों को मिलने के लिये बुलाते हैं)
वन विभाग के साहेब-(इन पाँच दोस्तों से)क्या बात है,आज आपलोग हमसे मिलने आये हैं।
(आश्चर्य पूर्वक)और अरे हम तो कुछ पूछना ही भूल गये थे।आपलोग वैद्य जी वाला झोला में क्या लेकर आये हैं?
वैद्य जी-(खुशी से दवा की पुड़िया देते हुये)सर यह सब दवा हमलोग उ जो गाछ लगाये हैं न,उ लगाये हैं न उससे,सूगर,टूट भांग,जोंडिस, किडनी,पत्थरी,गैस्टिक आदि की दवा बनाये हैं, सर जी।आउरो जानते हैं सर जी,अब हमलोग दवा बेचकर ढेरों रूपया भी कमाने लगे हैं और जानते हैं साहेब अब तो हमलोग बहुते रूपया कमा कर एगो दस बीघा का जमीन खरीदे हैं जहाँ पर हमलोग ऑक्सीजन लेने वाला पार्क बनाने जा रहे हैं। वन विभाग के साहेब-अरे तू बहुते बंढ़िया काम कर रहा है,रे।वन विभाग तुमलोगों को बहुते रूपया अनुदान देगा।
वैद्य जी-और जानते हैं साहेब उहां हमलोग 100 रूपया प्रति घंटा के लिये ऑक्सीजन लेने के लिये अंदर पार्क में जाने देंगे।
वन विभाग के साहेब-बहुते बढ़ियां काम कर रहे हो और अब तो तुमलोगों का नाम पुरस्कार देने के लिये भेजेंगे।तुम लोगों का दुनियाँ में नाम चमकेगा आउरो ढेरे रूपया कमा लोगे।
“अगला-दृश्य”
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(कोरोना संकट के कारण लोगों का ऑक्सीजन लेबल गिरता जा रहा है,लोग ऑक्सीजन की तलाश में भटक रहे हैं।दूसरी और वैद्य जी ऑक्सीजन पार्क बना लिये हैं,जहाँ ऑक्सीजन का आनन्द लेने के लिये 100 रूपया प्रति घंटा लग रहा है।इसी बीच वन विभाग के साहेब भी घूमते- घामते हुये ऑक्सीजन पार्क पहुँचे हैं जहाँ पर 100 रूपया देकर वह भी आॅक्सीजन पार्क का भी मजा ले रहे हैं तथा श्वांस लेने में भी आनंद आ रहा है।
वैद्य जी(वन विभाग के साहेब को देखकर)साहेब आपको भी रूपया देना पड़ा,ई तो बड़ा गड़बड़ बात हो गया साहेब जी गेट वाला आपसे भी ऑक्सीजन पार्क में घुसने का रूपया ले लिया।
वन विभाग के साहेब-नहीं वैद्य जी मैं तो बहुत खुश हूँ कि आप लोगों ने ऑक्सीजन पार्क बनाकर तथा पेड़ लगाकर रोजगार उपलब्ध कर लिया।
वैद्य जी-साहेब अब हमलोग कभी भी काम के लिये बाहर नहीं जायेंगे।अब हमलोग पेड़ लगाकर अपना रोजी -रोटी कमायेंगे और वन विभाग को भी पेड़ लगवाने के लिये सहयोग करेंगे तथा देश को सुखी संपन्न बनायेंगे।जय हो”वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग बिहार सरकार।
आलेख साभार श्री विमल कुमार “विनोद”शिक्षाविद,भलसुंधिया,गोड्डा (झारखंड)।