असली कमाई-संजीव प्रियदर्शी

चिलचिलाती धूप में ठेले पर ईख का रस बेचने वाले एक दिहाड़ी से मैंने पूछ लिया- ‘ दोपहर की इस भयानक गर्मी में पसीना बहाकर कितनी कमाई कर लेते हो?’‘कमाई… असली कमाई-संजीव प्रियदर्शीRead more

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तरकीब-संजीव प्रियदर्शी

उस रोज मुझे रात की ट्रेन से घर लौटना था। चूंकि मैंने जाते समय ही यह सोच कर वापसी का टिकट आरक्षित करवा लिया था कि डेढ़-दो सौ रुपए की… तरकीब-संजीव प्रियदर्शीRead more

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जहर – संजीव प्रियदर्शी

सुखाराम ने बजरंगी को अपने घर बुलवाकर कहा-‘ बजरंगी भाई, इस बार कपास की खेती कर लो,चाँदी काटोगे। और हां, खेती में जितने भी रुपये लगेंगे सब मैं दे दूंगा।… जहर – संजीव प्रियदर्शीRead more

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नमक हराम -संजीव प्रियदर्शी

‘रमेश बिल्कुल नमक हराम निकला। कितना समझाया था कि बाबूजी को घर पर रखकर उनकी अच्छी तरह देखभाल किया करना। परन्तु उसने तो बाबूजी को वृद्धाश्रम में ले जाकर छोड़… नमक हराम -संजीव प्रियदर्शीRead more

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धरती रो पड़ेगी – संजीव प्रियदर्शी

रमिया और टुनका दहाड़ें मार कर रो रहे थे। रोते भी क्यों नहीं, जिगर का एक ही तो टुकड़ा था जिसे गंगा मैया ने अपने ओद्र में समा लिया था।टुनका… धरती रो पड़ेगी – संजीव प्रियदर्शीRead more

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राखी का मोल-संजीव प्रियदर्शी

राखी का मोल           उस समय मेरी उम्र तेरह-चौदह वर्ष की थी। मैं अपनी भाभी के साथ शाम की ट्रेन से गया जा रहा था। शायद… राखी का मोल-संजीव प्रियदर्शीRead more

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धूप में देवता-संजीव प्रियदर्शी

 धूप में देवता           रघु बारह हजार रुपये पत्नी लखिया को देते हुए बोला – “रख ले ये रुपये। फ़सल के दाम हैं।” लखिया नोटों की… धूप में देवता-संजीव प्रियदर्शीRead more

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